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मोम के दात
और लोहे के चने
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निषेध का परिणाम
फ्रायड अपनी पत्नी के साथ घूम रहे थे। साथ में लड़का भी था। बगीचे में घूमते-घूमते काफी देर हो गई। थोड़ी देर बाद पत्नी ने मुड़कर देखा तब भी वह लड़का दिखाई नहीं दिया। पत्नी घबड़ा गई। उसने फ्रायड से कहा-'तुम जल्दी करो। लड़का कहा है, खोजो।'
फ्रायड ने कहा-'घबरा क्यों रही हो? कोई खास बात नहीं है।' 'नहीं, देखो! इतनी इतनी भीड़ है, कहीं गुम हो जाएगा।' फ्रायड ने शांत भाव से कहा-'चिंता की कोई बात नहीं है।' 'मैं बहुत चिन्तित हूं।' 'क्या तुमने उसे कहीं जाने की मनाही की थी?'
'हा, वह तालाब के पास जाना चाहता था। मैंने उससे कहा-तुम तालाब के पास मत जाना।'
फ्रायड ने कहा- लड़का वहीं मिलेगा।
दोनों उसी मार्ग पर चल पड़े, तालाब के पास पहुंचे, लड़का वहीं खड़ा था।
पत्नी विस्मय भरे स्वर में बोली-'क्या आपको कोई ज्ञान हो गया? आपको कैसे पता चला कि लड़का वहीं मिलेगा?'
फ्रायड बोला-'यह मनोविज्ञान का नियम है। जिस काम के लिए बच्चे को मनाही करो, बच्चा वह काम जरूर करेगा। तुमने मनाही की थी तालाब के पास मत जाना और मैंने जान लिया, बच्चा जरूर वहीं गया है।'
फ्रायड ने मनोविज्ञान का एक सामान्य नियम बना दिया और वह नियम बच्चे के लिए ही नहीं, बड़ों के लिए भी लागू होता है जिस कार्य का निषेध किया जाएगा, उसके प्रति आकर्षण अधिक पैदा होगा। जैन रामायण के प्रसंग में एक कहानी कही जाती है।
__ एक सेठानी को जिस काम के लिए मनाही करते, वह उस काम को जरूर करती। सेठ ने कहा-'आज सावण की तीज है। आज मेला लगेगा, तुम्हें वहां नहीं जाना है।'
'मैं जरूर जाऊंगी।' 'ठीक है। जाओ तो अकेले मत जाना, बच्चों को साथ लेते जाना।'
'नहीं! अकेली ही जाऊंगी। क्या मैं निकम्मी हूं, जो बच्चों को पीछे-पीछे ले जाती रहूं?'
'कोई बात नहीं। पर जाओ तो अच्छे कपड़े और गहने पहन कर जाना। नहीं तो अच्छा नहीं लगेगा। लोग कहेंगे-देखो, इतने बड़े सेठ की पत्नी है और सीधे-सादे फटे-पराने कपड़ों में आई है।'
'मैं अच्छे वस्त्र नहीं पहनूंगी।' 'वहां जाओ तो नदी के पास में तो मत जाना।' 'नदी के पास में ही नहीं, भीतर जाऊंगी।'
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