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समस्या का मूल : परिग्रह
एक शिष्य अध्यात्म और विज्ञान का तुलनात्मक अध्ययन कर रहा था। उसने मनोविज्ञान को भी पढ़ा। उसके मन में एक प्रश्न उभरा। वह उसे समाहित नहीं कर पाया। उसने गुरु से जिज्ञासा की-'गुरुदेव! मनोविज्ञान का प्रवर्तक फ्रायड कहता है हमारी सारी प्रवृत्तियों का मूल है सेक्स (कामवृत्ति)। क्या यह मत सही है?' गुरु ने कहा-'हम अनेकान्तवादी हैं इसलिए उसे अस्वीकार न करें किन्तु सीधा स्वीकार भी न करें। यह एक सापेक्ष सत्य है। पूर्ण सत्य नहीं है। पूरी सचाई के लिए कर्मशास्त्र का अध्ययन करना होगा।' गुरु ने मोहनीय कर्म का विवेचन करते हुए समझाया-'मूलवृत्ति लोभ है। शेष वृत्तियां इससे उपजी हुई हैं। इसे हम लोभ कहें, राग कहें या परिग्रह, यही मूल वृत्ति है।'
एका वृत्तिर्भवेद् मूलं, लोभो रागः परिग्रहः।
अधिकारोऽथवा वाच्यः, परास्तेनोपजीविताः।। लोभ है तो क्रोध आता है। क्रोध की पृष्ठभूमि में छिपा रहता है लोभ । अभिमान क्या है? वह भी लोभ का उपजीवी है। लोभ है तो माया होती है।
शिष्य ने जिज्ञासा की-'गुरुदेव! क्या मनोविज्ञान का यह मत गलत है-काम मूल वृत्ति है।'
गुरु ने कहा-'वत्स! काम लोभ की उपजीवी वृत्ति है। सब नोकषाय कषाय की उपजीवी वृत्तियां है। लोभ और काम-दोनों जुड़े हुए हैं। नियुक्तिकार ने काम के दो प्रकार किए हैं-इच्छाकाम और मदनकाम। मदनकाम (सेक्स) मूल नहीं है, मूल है इच्छाकाम।'
आचार्य ने कहा-'फ्रायड ने जो कहा है, वर्तमान मनोविज्ञान में वह अवधारणा भी बदल गई है। वर्तमान मनोवैज्ञानिक यह मानने लग गए हैं-मूल वृत्ति सेक्स नहीं है। मूल वृत्ति है अधिकार की भावना। वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया। ऐसा कृत्रिम तालाब बनाया, जिसमें तापमान को नीचे गिरा दिया गया। तालाब में जितने जलचर प्राणी थे, उनकी सारी कामवृत्ति समाप्त हो गई। सेक्स का सम्बन्ध व्यक्ति के तापमान से है। तापमान के नीचे गिर जाने पर भी अधिकार की भावना उनमें बनी रही। इस विषय पर वैज्ञानिकों ने बहुत गहरा अध्ययन किया है। उनका निष्कर्ष है-अपने अधिकार को, अपने निवास-स्थान को छोड़ना कोई पसन्द नहीं करता।'
दो महत्त्वपूर्ण शब्दों का चुनाव किया गया-अगार और अनगार।
अनगार वह है, जिसने अधिकार की वृत्ति को समाप्त कर दिया, घर को छोड़ दिया। अनगार का अर्थ है-मूल मनोवृत्ति पर प्रहार करने वाला। चिड़िया
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