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महावीर का पुनर्जन्म
राजा का काम बना नहीं। जब मन में प्रशंसा पाने की आकांक्षा जाग जाए और प्रशंसा से भरे शब्द व्यक्ति के कानों में न पड़े तो वह बैचेन हो उठता है। राजा बैचेन हो गया। उसने कहा—'महाराज! आप देखिए, इस मकान के खंभे कितने मजबूत हैं। सामने वाला हॉल हजारों खंभों वाला है।' वर्तमान युग में खंभा न होना शिल्प के महत्त्व का सूचक है। प्राचीन युग में खंभों का अधिक होना महत्त्वपूर्ण माना जाता था। राजा कहता चला गया-'इस मकान की छतें कितनी नक्कासीदार हैं, कितनी मजबूत हैं, कितनी भव्य और आकर्षक हैं।'
संन्यासी सब कुछ सुनता रहा किन्तु उसके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला। राजा से रहा नहीं गया। वह बोला-'महाराज! कुछ तो कहें! आपको यह सुन्दर मकान कैसा लगा, यह सुनने के लिए मैं अत्यन्त उत्सुक हूं।'
_ 'राजन! मकान जैसा है वैसा लग रहा है। यह काफी अच्छा बना है, मजबूत बना है। इसमें समय, शक्ति और धन का प्रचुर उपयोग हुआ है पर इसमें एक कमी खटक रही है।'
'क्या कमी खटक रही है? मैं उसे तत्काल पूरी करवा दूंगा।'
'यह मकान चिरस्थायी हो सकता है किन्तु इसमें रहने वाला कोई स्थिर नहीं है।' नया है निर्वाण
शाश्वत में विश्वास करने वाले व्यक्ति का स्वर यही हो सकता है। भारतीय दर्शन में दो धाराएं रही है—शाश्वतवादी धारा और अशाश्वतवादी धारा, निर्वाणवादी धारा और स्वर्गवादी धारा। प्रवर्तक धर्म स्वर्गवादी धर्म रहा है और निवर्तक धर्म निर्वाणवादी धर्म। दार्शनिक काल में कुछ ऐसा हुआ कि दोनों का मिश्रण हो गया। वस्तुतः अध्यात्म प्रधान जितने धर्म हैं, वे स्वर्गवादी नहीं हैं। प्रवर्तक धर्म का अंतिम लक्ष्य है स्वर्ग को पा लेना। अध्यात्म के क्षेत्र में इस चिन्तन को महत्त्व नहीं दिया गया। स्वर्ग पाना कोई बड़ी बात नहीं है। स्वर्ग पाने वाला व्यक्ति देवता बनता है। इसका अर्थ है-वह अधिक भोग प्रधान बन जाता है। मनुष्य जीवन में जो सुख-सुविधा और भोग-विलास के साधन प्राप्त हैं, देवता में उनका उत्कर्ष हो जाता है। जो मनुष्य को प्राप्त हैं, वे ही देवता को प्राप्त होते हैं, उनमें केवल मात्रा का भेद है। एक आदमी लखपति है, एक करोड़पति है, एक अरबपति है और एक खरबपति है। यह मात्रा-भेद जैसे मनुष्य लोक में है वैसे ही देवलोक में भी है। देवता के पास अपार धन है लेकिन है वही, जो मनुष्य लोक में है। स्वर्ग में नया कुछ भी नहीं है, नया है निर्वाण। विज्ञान का चिन्तन ।
आज के वैज्ञानिक इस खोज में लगे हुए हैं कि मौत को समाप्त कर दिया जाए, आदमी को मौत से मुक्त कर दिया जाए। यह बड़ा विचित्र प्रश्न है-एक ओर परिवार के नियोजन की बात चल रही है, दूसरी ओर आदमी को अमर बनाने की बात सोची जा रही है। सारे अमर बन जाएंगे तो समाएंगे कहां? आज की पीढ़ी अमर बन गई तो आने वाली पीढ़ी के लिए कहीं अवकाश
ही नहीं रहेगा। यदि आने वाली पीढ़ी उतनी ही आ गई तो कहां समाएगी? यह Jain Education International For Private & Personal Use Only
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