________________
जो रास्ते में घर बनाता है
८६
मतलब है शाश्वत में रमण करना। ऐसी स्थिति में रमण करना, जहां सारे पर्याय समाप्त हो जाएं। मूल की खोज : शाश्वत की खोज
___ मनुष्य कोरा पर्याय है, द्रव्य नहीं है। वह केवल एक अवस्था है, अवस्थावान् नहीं है। एक संतरा, केला और नींबू एक अवस्था है, मूल तत्त्व नहीं है। ये सारी उसकी अवस्थाएं हैं। अवस्था मूल नहीं होती। मूल की खोज करना शाश्वत की खोज करना है। व्यक्ति पर्याय में उलझा हुआ है, अवस्था में उलझा हुआ है। एक के बाद एक अवस्था का चक्र चलता है और आदमी उसमें उलझता चला जाता है। वह मूल को छू ही नहीं पाता।
मूल तक पंहुचने के लिए प्रयत्न करने की जरूरत है। वैज्ञानिक मूल कण की खोज में लगे हुए हैं। आध्यात्मिक लोग भी इससे बच नहीं सकेंगे। यदि वे इस खोज से बचेंगे तो आध्यात्मिक नहीं बन पाएंगे। आध्यात्मिक व्यक्ति को भी खोजना है-मूल कण क्या है? मूल तत्त्व क्या है? मूल तत्त्व की खोज शाश्वत में घर बनाने की खोज है। शाश्वत में घर बनाने और मल तत्त्व को खोजना-दों बातें नहीं हैं। अपेक्षा है-व्यक्ति-व्यक्ति में प्रेक्षा की चेतना, दर्शन की चेतना जागे और वह मूल तत्त्व को खोज सके, शाश्वत में अपना घर बना सके। इस चेतना का जागरण ही शाश्वत की दिशा में प्रस्थान है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org