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जो रास्ते में घर बनाता है
विरोधाभास आज चल रहा है। आदमी बूढ़ा न बने, विज्ञान की एक पूरी शाखा इसकी खोज में लगी हुई है । बहुत आशा के साथ कहा जा रहा है- कुछेक दशकों में बुढ़ापे पर नियन्त्रण पा लिया जाएगा, फिर आदमी कभी बूढ़ा नहीं बनेगा। कृत्रिम उपयों के द्वारा ऐसा किया जा रहा है। चेहरे पर झुर्रियां पड़ीं, प्लास्टिक सर्जरी कराई और आदमी जवान बन जाएगा। अवयवों का प्रत्यारोपण हो रहा है। कोई अवयव खराब हुआ, उसका प्रत्यारोपण कर दिया गया और अवयव ठीक हो जाएगा।
एक व्यक्ति के सिर का प्रत्यारोपण किया गया। कुछ दिन बाद डॉक्टर ने उसकी पत्नी से पूछा- तुम्हारे पति का स्वास्थ्य तो ठीक है? पत्नी ने कहा- और तो ठीक-ठाक है पर आजकल वे बहुत झूठे आश्वासन देने लगे हैं। दिन भर आश्वासन देते रहते हैं किन्तु कोई भी काम पूरा नहीं करते। डॉक्टर ने कान पकड़ते हुए कहा - एक भूल हो गई। जब सिर का प्रत्यारोपण किया था तब एक मन्त्री का सिर लगा दिया था इसलिए ऐसा हो रहा है। मंत्री का काम है आश्वासन देना । आश्वासन के आधार पर ही सारा काम चल रहा है। जो आश्वासन देना नहीं जानता, वह सफल राजनेता नहीं हो सकता ।
आज प्रत्येक चीज का प्रत्यारोपण हो रहा है और उसके माध्यम से बुढ़ापे को रोकने की योजना चल रही है ।
संसार को निर्वाण बनाने की कल्पना
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आज का वैज्ञानिक यह भी प्रयत्न कर रहा है कि रोग को समाप्त कर दिया जाए, बीमारियां न हों। ऐसी स्थिति का निर्माण किया जा रहा है, जहां वेदना न हो, संवेदन और कष्ट न हो, इसके काफी उपाय वर्तमान विज्ञान में खोज लिए गए हैं। ऐसा लगता है-आज का वैज्ञानिक संसार को निर्वाण बनाना चाहता है। पहले वह संसार को स्वर्ग बनाना चाहता था और अब वह उसे निर्वाण बनाना चाहता है। निर्वाण में बुढ़ापा नहीं है, मौत नहीं है, रोग नहीं है और कष्ट नाम की कोई चीज नहीं है। उसका नाम है शाश्वत धर्म, उसका नाम है निर्वाण । यह निर्वाणवादी धारा का चिंतन आज इस पृथ्वी का चिंतन बन रहा है । यह अध्यात्म का चिंतन आज के वैज्ञानिक का चिंतन बन रहा है । यह कल्पना बहुत अच्छी है। यह धरती निर्वाण बन जाए, बुढ़ापा, मौत, बीमारी और कष्ट समाप्त हो जाएं तो व्यक्ति निर्वाण जाने का प्रयत्न क्यों करेगा? वह पृथ्वी पर ही रहना चाहेगा, जीना चाहेगा। निर्वाण की बात सोचने की क्या जरूरत होगी?
शाश्वत की अदम्य आकांक्षा
महावीर ने कहा- अपथ की खोज । ताओ धर्म में कहा गया- जहां सारे पथ समाप्त हो जाते हैं, जहां कोई मार्ग नहीं है, पथ नहीं है, व्यक्ति उस शाश्वत स्थान पर जाना चाहता है। जहां जाने पर वापस न आना पड़े, पुनः जन्म न लेना पड़े, बूढ़ा न होना पड़े, बीमार न होना पड़े और कष्ट न भोगना पड़े, शाश्वत की यह एक अदम्य आकांक्षा मनुष्य में रही है। दोनों प्रकार के लोग होते
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