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दो परंपराओं के बीच सीधा संवाद
हिन्दुस्तान में दो परंपराएं बहुत पुरानी हैं-ब्राह्मण परंपरा और श्रमण परंपरा। ब्राह्मण परंपरा प्रवर्तक धर्म की परंपरा है, - स्वर्गवादी परंपरा है। श्रमण परंपरा निवर्तक धर्म की परंपरा है, निर्वाणवादी परंपरा है। इसलिए दोनों के सिद्धांत और धारणाएं भिन्न हैं। यह स्वाभाविक है-स्वर्गलक्षी चिन्तन की धारणा एक प्रकार की होगी और मोक्षलक्षी चिन्तन की धारणा उससे भिन्न प्रकार होगी।
__ भृगुपुत्रों के मन में मोक्ष की प्रेरणा जग गई। उन्होंने पिता से कहा-पिताजी! हम मुनि बनना चाहते हैं।
'किसलिए?' 'मोक्ष पाने के लिए।
पिता ने सोचा-यह परिवर्तन कैसे आया? अकस्मात् यह कैसे हुआ? इनका चिन्तन कैसे बदल गया?
पिता और पत्रों के मन में एक अन्तर्द्वन्द्व चला। उस अन्तर्द्वन्द्व ने उनके अन्तर्मानस को उद्वेलित कर दिया। उत्तराध्ययन सूत्रकार ने उस अन्तर्द्वन्द्व को बहुत थोड़े शब्दों में प्रस्तुत किया है। उन शब्दों के पीछे न जाने कितना चिन्तन रहा होगा! सूत्र का अर्थ ही है सूचना देना। सूत्रकार ने एक सूचना देकर अन्तर्द्वन्द्व का एक संकेत प्रस्तुत कर दिया। आज उस अन्तर्द्वन्द्व की व्याख्या की जा सकती है।
__पिता का अन्तर्द्वन्द्व यह था-दो घंटे पहले घर से बाहर गए तब तक कुछ नहीं था। दो घंटे बाद वापस आए और सब कुछ बदल गया। क्या इतना जल्दी कोई व्यक्ति बदल सकता है? यदि आदमी इतना जल्दी बदल जाए, परिवर्तन का ऐसा सूत्र हाथ लग जाए तो चमत्कार घटित हो जाए। बड़े-बड़े वैज्ञानिक बदलने के सूत्र की खोज में लगे हुए हैं। अनेक दशकों से परिवर्तन के सूत्र की खोज चल रही है। वे छोटे जीवों और प्राणियों को बदलने में सफल भी हुए हैं, किन्तु मनुष्य को बदलने के सूत्र अभी तक हाथ नहीं लगे हैं। दुनिया में यदि सबसे जटिल प्राणी कोई है तो वह है मनुष्य। मनुष्य का मस्तिष्क सबसे जटिल है।
प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक मान्यता या धारणा होती है। उसे चिरकाल से पोषण मिलता रहता है। यह सद्यः विलीन हो सकती है। ऐसा चिन्तन किसी समझदार व्यक्ति को नहीं करना चाहिए।
मान्यता धारणा यास्ति, चिरकालेन पोषिता। सद्यः सा विलयं गच्छेद्, नेति चिन्त्यं विचक्षणैः ।।
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