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समय का अंकन हो
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क्या है तो उत्तर देना कठिन होगा। यदि पूछा जाए-पराजय का सूत्र क्या है तो मेरा उत्तर होगा
जयस्य सूत्रं निर्देष्टुं, नाहमस्मि क्षमस्तथा।
पराजयस्य सूत्रं तु, प्रमादात् परमस्ति नो।। पराजय का सबसे बड़ा सूत्र है-प्रमाद। जिसको जीवन में असफल होना है, पराजित होना है, हार का जीवन जीना है, उसके लिए सबसे सुन्दर सूत्र है-प्रमाद, प्रमाद और प्रमाद। प्रमाद में जीने वाले व्यक्ति को पराजय पाने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता। नींद एक प्रमाद है, विकथा और आलस्य प्रमाद है, निठल्ला बैठे रहना, हास्य-मजाक करना, नशे में चले जाना—ये सब प्रमाद हैं। महावीर इनके प्रति बहुत जागरूक थे। उन्होंने कहा-क्षण भर भी प्रमाद मत करो, निरन्तर जागरूक रहो। व्यवहार जगत् में भी जागरूकता का बहुत मूल्य है। मारवाड़ की प्रसिद्ध कहावत है-'सूत्यां के पाडा जणै।' ।
दो भैंसें गर्भवती थीं। दोनों ने एक साथ प्रसव किया। एक ने पाडे को जन्म दिया। दूसरी ने पाडी को जन्म दिया। दोनों भैंसों के मालिक दो थे। जब भैंस ने प्रसव किया तब एक का मालिक सो रहा था, दूसरी का मालिक जाग रहा था। जो जाग रहा था, उसने पाडी को हथिया कर अपनी भैंस के पास सुला दिया और पाडे को दूसरी भैंस के पास। जो सो रहा था, उसे पाडा मिला और जो जाग रहा था, उसे पाडी मिल गई। अब इसका निर्णय कौन करे-पाडी किसने जनी और पाडा किसने जना? जिसे जो मिलना था, वह मिल गया। कहावत बन गई-सूत्यां के पाडा जणै। अप्रमत्तता : सैद्धान्तिक आधार
जागरूकता की अखण्ड ज्योति निरन्तर जलती रहे, कभी बुझे नहीं, ऐसा क्यों कहा गया? इसका आधार क्या है? इस प्रश्न की गहराई में जाने पर इसका सैद्धान्तिक आधार उपलब्ध हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति सद्गति में जाना चाहता है। कोई भी व्यक्ति दुर्गति में जाना नहीं चाहता, नरक में जाना नहीं चाहता। कोई भी व्यक्ति मनुष्य बनकर उससे निम्न जाति को पाना नहीं चाहता, वह गधा या बैल बनना नहीं चाहता, जो निरन्तर भार ढोता रहता है और ऊपर से प्रहार सहता रहता है। वह ऊर्ध्वारोहण चाहता है, उन्नयन चाहता है। वह चाहता है-जिस स्थिति में मैं आज हूं उससे अधिक अच्छी स्थिति कल मिले। उसकी इस आकांक्षा की पूर्ति आगामी जन्म पर निर्भर है। व्यक्ति का अगला जन्म श्रेष्ट होगा तो उसका ऊर्ध्वारोहण होगा। अगला जन्म आयुष्य के बंध पर निर्भर है। व्यक्ति जिस गति के आयुष्य का बंध करता है, वह मरकर उसी गति को प्राप्त होता है। आयुष्य का बंध कब होगा, इसके निश्चित समय की जानकारी व्यक्ति को नहीं होती। ऐसी स्थिति में निरन्तर जागरूकता ही उसके सुखद भविष्य का आश्वासन बनती है, आधार बनती है। . महावीर ने कहा-आयु-बंध का समय निश्चित नहीं है। यदि तुम्हें अच्छी गति में जाना है तो निरन्तर अप्रमत्त रहना चाहिए
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