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महावीर का पुनर्जन्म
दो लड़के बात कर रहे थे। एक लड़का बोला- 'मेरे पिता ने मुझसे कहा - यदि तुम बुराई छोड़ दो तो एक लाख रुपये दूंगा।'
मित्र ने पूछा - 'तुमने लिए या नहीं?'
'नहीं लिए।'
'अरे! कितने भोले आदमी हो। एक लाख रुपये मिल रहे थे और तुमने नहीं लिए?"
'यदि बुराइयों को छोड़ दूंगा तो लाख रुपयों का क्या करूंगा ?"
जब तक बुराई को छोड़ने का संकल्प नहीं जागेगा, तब तक व्यक्ति को बदला नहीं जा सकेगा। पहले यह संकल्प जागे- मुझे पुद्गल के एक छत्र साम्राज्य को तोड़ना है । उसका जो एक लोहावरण बन गया है, उस लोहावरण को तोड़ना है। यह संकल्प जागे, बुराई को छोड़ने की भावना जागे तो उपाय संभव हो सकता है।
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शिष्य ने कहा- गुरुदेव ! मैं उपाय जानना चाहता हूं और बुराइयों को छोड़ना भी चाहता हूं। आप कृपा कर मुझे बताएं ।
गुरु ने कहा- 'मैं पुद्गल नहीं हूं, चिद्रूप हूं, आत्मा हूं, चैतन्य हूं,' यह भेदविज्ञान की साधना योगक्षेम को जानने का उपाय है।
योगक्षेमस्य संवित्ते, उपायो ऽसौ निदर्शितः । नो पुद्गलोस्मि चिद्रूप, इति भेदस्य साधना ।।
जरूरी है विकल्प
पुद्गल के एकछत्र साम्राज्य का यह एक सशक्त विकल्प है । सामने कोई अच्छा विकल्प होता है तो बड़ी से बड़ी बाधा को भी जीता जा सकता है। जब तक सामने कोई विकल्प न हो तब तक वह अपना शासन चलाता रहता है ।
एक दावत में अनेक नास्तिक लोग उपस्थित हुए । चर्चा चली धर्म पर । एक नास्तिक ने कहा-' - 'दुनिया को सबसे ज्यादा खराब करने वाले धर्म को सहा जा रहा है, इससे ज्यादा मूर्खता की बात और क्या होगी ? जिस धर्म ने हत्याएं करवाई, रक्तपात करवाए, भूमि को रक्तरंजित करवाया, गले कटवाए, उस धर्म को आज भी सहा जा रहा है, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है ।' तर्क बहुत तीक्ष्ण था । आस्तिक लोग भी इस दावत में सम्मिलित थे । एक आस्तिक ने कहा- 'आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। धर्म को सहा जा रहा है क्योंकि दुनिया के किसी भी नास्तिक ने उससे बढ़िया विकल्प सामने नहीं रखा। अगर धर्म का कोई बढ़िया विकल्प सामने आता तो धर्म को भी उतार कर फेंक दिया जाता किन्तु किसी भी नास्तिक ने धर्म से बढ़िया विकल्प आज तक प्रस्तुत नहीं किया।' सारे नास्तिक इस तर्क को सुनकर अवाक् रह गए।
प्रसिद्ध मनोवैानिक कार्ल गुस्ताव युंग ने लिखा- एक धर्म जितनी समस्याओं का समाधान देता है, हजारों मनोवैज्ञानिक भी अभी तक उतने समाधान नहीं दे पाए हैं।
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