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महावीर का पुनर्जन्म
किसी-किसी व्यक्ति में घटित होती हैं। एक साथ आदमी नहीं बदलता। सामान्यतः परिवर्तन शनैः शनैः होता है। व्यक्तित्व में परिवर्तन अन्तःइच्छा से भी होता है और प्रभाव से भी। परिवर्तन स्वतः भी होता है और परोपदेश से भी होता है
शनैः शनैरन्तरिच्छाकृतं क्वचित् प्रभावतः।
स्वतः परोपदेशाद् वा, व्यक्तित्वे परिवर्तनम् ।। अन्तर्द्वन्द्व में जी रहा है आदमी
व्यक्ति में जो परिवर्तन होता है, वह चेतन-इच्छा से परे होता है। आदमी बदलना चाहता है, उसके मन में बदलने की इच्छा है किन्तु जब तक वह स्थूल-चेतना के स्तर पर है, उसे बदलना मुश्किल है। आचार और व्यवहार का निर्धारण होता है अवचेतन मन के स्तर पर। एक व्यक्ति की कोई आदत है, स्वभाव है, प्रकृति है, उसका कारण अवचेतन मन में विद्यमान है। किसी को क्रोध ज्यादा आता है, किसी में अहंकार अथवा लोभ ज्यादा है। इन सबका मूल स्रोत है अवचेतन मन। कर्मशास्त्र की भाषा में ये सारे प्रवाह, ये सारे प्रकम्पन कर्मशरीर से आ रहे हैं। चेतन में क्रोध उभरता है। व्यक्ति सोचता है—यह काम करना अच्छा नहीं है, क्रोध करना अच्छा नहीं है। यह चिन्तन उसके चेतन मन में उभरता है। वह देखता है-क्रोध करने वाले को भर्त्सना मिलती है। क्रोध करने वाले से लोग सम्पर्क नहीं रखते, उसकी उपेक्षा करते हैं। उसके मन में एक इच्छा जागती है-क्रोध नहीं करना चाहिए। यह इच्छा चेतन मन के स्तर पर जागती है किन्तु क्रोध का प्रवाह अवचेतन मन से आता है। जो भीतर से आ रहा है, वह बाहर की इच्छा को कैसे स्वीकार करेगा? क्यों मानेगा? वह उस काम को करता चला जाता है। वह बहुत बार कहता है-मैं अब क्रोध नहीं करूंगा, किन्तु प्रसंग आते ही वह क्रोध में चला जायेगा। परिवर्तन का सूत्र
व्यक्ति चाहता कुछ है और करता कुछ। चेतन मन और अचेतन मन का यह एक अन्तर्द्वन्द है। स्थूल चेतना बुराई को छोड़ना चाहती है किन्तु भीतरी चेतना का ऐसा धक्का आता है, बन्द दरवाजा एकदम खुल जाता है, स्थूल चेतना के द्वारा उसे रोकना सम्भव नहीं बनता। जब तक स्थूल चेतना की इच्छा अवचेतन मन की इच्छा नहीं बनती तब तक व्यक्तित्व के रूपांतरण की बात सम्भव नहीं बनती। जब तक बाहरी इच्छा आंतरिक नहीं बन जाए तब तक परिर्वतन सम्भव नहीं है। रूपान्तरण का यह सूत्र कायोत्सर्ग, के मूल्यांकन से उपलब्ध हो सकता है। कायोत्सर्ग में स्थूलचेतना को शान्त कर दिया जाता है, शरीर को भी शांत कर दिया जाता है और उस स्थिति में अपने आपको जो
दिए जाते हैं, जो संकल्प किया जाता है, वह अवचेतन मन तक पहुंच जाता है, बाहर से भीतर तक चला जाता है। यह परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु है। जब सुझाव अवचेतन मन को प्रभावित करते हैं, बाहर से भीतर तक पहुंच जाते हैं तब रूपांतरण की संभावना बनती है।
सम्मोहन की स्थिति में भी ऐसा ही होता है। सम्मोहन में व्यक्ति की बाहरी चेतना को सला दिया जाता है। उस समय उसकी भीतरी चेतना सक्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only
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