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दोय मिल्यां दुःख होय
सोमिल ने भगवान महावीर से पूछा- 'भंते! आप अकेले हैं या दो हैं?" महावीर ने उत्तर दिया- 'मैं अकेला भी हूं और दो भी हूं।' सोमिल ने पुनः पूछा- 'भंते! दोनों बातें कैसे?' महावीर ने उत्तर दिया- 'निश्चय नय की दृष्टि 'से मैं अकेला हूं, ज्ञान और दर्शन की दृष्टि से मैं दो हूं ।'
इस दुनिया में कोई व्यक्ति अकेला नहीं है और कोई व्यक्ति दो नहीं है । निश्चय नय की दृष्टि से हर व्यक्ति अकेला है । व्यवहार नय की दृष्टि से हर व्यक्ति दो है और सौ भी है। कहा जाता है— नमि एकाकी भलो दोय मिल्यां दुःख होय । दो मिलने से ही दुःख होता है। इस बात को अनेकांत दृष्टि से समझना अपेक्षित है। किसी भी एक कोण को सर्वांगीण मानकर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। दो मिलने से दुःख होता है, दो मिलने से सुख भी होता है । व्यक्ति अकेला बैठा है, बीमार है, दूसरा पास आता है और थोड़ा-सा पूछ लेता है तो लगता है पचास प्रतिशत दुःख बंटा लिया गया। दूसरा व्यक्ति देता कुछ भी नहीं है, करता कुछ भी नहीं है पर दो शब्द सहानुभूति के बोल देता है । व्यक्ति समझता है- मेरा आधा दुःख तो चला गया है। इस स्थिति में यह कैसे माना जाए - दो मिलने से दुःख होता है? दो मिलने से बड़ा सुख भी होता है। एक अकेली सृष्टि है और एक द्वन्द्वात्मक सृष्टि है, दोनों सापेक्ष हैं ।
उपनिषद् में कहा जाता है-ब्रह्मा अकेला था। अकेले में उसका मन नहीं लगा। उसने संकल्प किया - एकोऽहं बहुस्याम् - मैं अकेला हूं, बहुत बन जाऊं । ब्रह्मा का भी अकेले में मन नहीं लगा तो फिर किसका अकेले में मन लगेगा? अकेला होना बहुत अच्छा है, यह सापेक्षता के आधार पर ही कहा गया। अनुप्रेक्षा का एक प्रयोग है एकत्व अनुप्रेक्षा, अकेलेपन का चिंतन । एक दृष्टिकोण रहा अकेला होने का। आदमी अकेला आता है और अकेला चला जाता है । न कोई साथ में आता है और न कोई साथ में जाता है। व्यक्ति अकेला कर्म करता है और अकेला कर्म का फल भोगता है । यह है एकत्व ।
प्रत्येक व्यक्ति अकेला है। एक और अनेक का जो भेद है, वह सारा व्यवहार नय का प्रतिपादन है
एकः समूहमध्यस्थः, समूह एकमाश्रितः । एकानेकविभेदो ऽयं, व्यवहारे प्रवर्तते ।।
व्यवहार नय में न किसी को एक कहा जा सकता है और न अनेक कहा जा सकता है । उसमें एक और अनेक दोनों का स्वीकार है । कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो समूह में न हो और कोई भी समूह ऐसा नहीं है जिसमें एक न हो। कोई भी सागर की बूंद ऐसी नहीं है जिसमें सागर न हो और कोई
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