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महावीर का पुनर्जन्म
आगम में कहा गया
असंजमं परियाणामि संजमं उवसंपज्जामि
असंयम से संयम की ओर प्रस्थान अन्नाणं परियाणामि नाणं उवसंपज्जामि
अज्ञान से ज्ञान की ओर प्रस्थान अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जमि
अक्रिया से क्रिया की ओर प्रस्थान मिच्छत्तं परियाणामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि
मिथ्या दृष्टिकोण से सम्यक् दृष्टिकोण की ओर प्रस्थान अबोहिं परियाणमि, बोहिं उवसंपज्जामि
अबोधि से बोधि की ओर प्रस्थान अमग्गं परियाणामि मग्गं उवसंपज्जामि
अमार्ग से मार्ग की ओर प्रस्थान
यह है योगक्षेम की ओर प्रस्थान। प्रश्न होता है-व्यक्ति योगक्षेम की ओर प्रस्थान क्यों नहीं कर रहा है? मार्ग स्पष्ट है, लक्ष्य निर्धारित है फिर भी वह उस दिशा में गतिशील क्यों नहीं है? वह अच्छाई को क्यों नहीं पा रहा है? वह योग और क्षेम को क्यों नहीं समझ रहा है? यदि इस प्रश्न की समीक्षा की जाए तो प्रस्थान में आने वाली बाधा को मिटाना सम्भव बन सकता है। प्रस्थान में क्या बाधाएं हैं, क्या विघ्न हैं, शायद यही समझने के लिए योगक्षेम वर्ष की आयोजना की गई है।
पुद्गलेनावृतं ज्ञानं दर्शनं पुद्गलावृत्तं। आनन्दः पुद्गलाछन्नश्चास्ति पौद्गलिकं वपुः।। अस्ति पुद्गलसाम्राज्यमेकच्छत्रमितस्ततः।
एवास्ति महती बाधा, योगक्षेमस्य संविदेः।। ज्ञान, दर्शन और आनन्द पुद्गल से आवृत हैं। व्यक्ति का शरीर भी पौद्गलिक है। चारों ओर पुद्गल का एकछत्र साम्राज्य है। यही योगक्षेम को समझने में महान् बाधा है। मालिक बन गया किराएदार
व्यक्ति के भीतर अनन्त ज्ञान का प्रकाश विद्यमान है। उसे कभी बिजली जलाने की जरूरत नहीं है। उसके भीतर अनन्त दर्शन है, उसे कभी देखने के लिए आंख को खोलने की जरूरत ही नहीं है। उसके भीतर अखूट आनन्द है, उसे सुख पाने के लिए कोई सामग्री जुटाने की जरूरत ही नहीं है। वस्तु-निरपेक्ष आनन्द भीतर है। पदार्थातीत सुख-प्राप्ति के अनंत-अनंत तत्त्व मनुष्य के भीतर हैं पर पुद्गल का एक ढक्कन आया हुआ है। नीचे अमृत है किन्तु ऊपर जहर का ढक्कन आ गया। इस स्थिति में अमृत काम में नहीं आ सकता। चारों ओर पुद्गल ही पुद्गल छाया हुआ है। आत्मा कहीं दिखाई ही नहीं देती है। योगक्षेम की ओर प्रस्थान में सबसे बड़ी बाधा है-पुद्गल का एक छत्र साम्राज्य होना।
पुद्गल एक आकर्षण पैदा करता है, संयम की ओर बढ़ते कदम रुक जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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