Book Title: Mahavir Jain Vidyalay Shatabdi Mahotsav Granth Part 01
Author(s): Kumarpal Desai
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
132
सिद्धराज गजराजमुच्चकैः कारय प्रसरमेतमहातः । संत्रसन्तु हरितां मतंगजस्तैः किमद्य भवतैव भूभृता ।। 'प्रभावकचरित', पृ. ३००, श्लोक-६७ क्लृप्तं व्याकरणं नवं विरचितं छन्दं नवं द्वयाश्रया लंकारौ प्रथितौ नवौ प्रकटितं श्री योगशास्त्रं नवम् । तर्कः संजनितो नवो जिनवरादीनां चरित्रं नवं
बद्धं येन न केनकेन विधिना मोहः कृतो दूरतः ।। - हेमसमीक्षा, पृ. २३ ११. मेन, पृ. २४ १२. तुष्टेन सर्वसमक्षं कविकहारमल्लं इति बिरुदं दत्तम् । 'रत्नमंदिरगणि', उपदेशतरंगिणी, पृ. ६२ . 93. Dr. K. H. Trivedi, The Natyadarpana of Ramchandra And Gunachandra, A Critical Study p.
219ff. १४. डॉ. मो. ४. सांस२१, ‘महामात्य वस्तुपादन साहित्य तथा संस्कृत साहित्यमा तनो यो', पृ.
१५.
दधिमथनविलोलल्लोलहग्वेणिदम्भा दयमदयमनङ्गो विश्वविश्वकजेता । भवपरिभवकोपत्यक्तबाणः कृपाण श्रममिव दिवसादी व्यक्तशक्तिर्विनक्ति ।। 'बालभारत', ३३.६

Page Navigation
1 ... 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240