Book Title: Lexicographical Studies In Jaina Sanskrit
Author(s): B J Sandesara, J P Thaker
Publisher: Oriental Institute

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Page 156
________________ 150 द्वारिका द्विजपाटक द्वीपदी धगड .. ___f. a back-door. इतः सूर्यास्तेऽम्बडो द्वारिकया प्रविश्य नृपं पाश्चात्येन [न]त्वा पृष्टौ स्थितः । 39.25-26. cf. Guj. बारी. m.? the locality of Brahmanas. 88.9, 13. Vide पाटक. ___f. a verse of two lines. एकदा रात्री नष्टचर्यायां तैलिकेन द्वीपदी पुनः २ प्रातः - पृष्टः II7.31. m. a Muslim warrior, सुरत्राणेन वदने निष्ठीवनं कृत्वा एकस्मै धगडाय, या पत्युन जाता सा मे भविष्यति इति वदता, प्रदत्ता। 90.11-12. [In Old Guj. the word Te is prevalent in the sense of 'a Muslim warrior' and धगडायण in that of 'a Muslim army'. Vide, for instance, the following references from Sridhara Vyasa's Ranamallachanda ( beginning of I5th cent. A.D.): 'यदि न भवति रणमल्लः प्रतिमल्लः पादशाहकटकानाम् । विक्रीयन्ते धगडैर्बाजारे मुर्जरा भूपाः ॥' verse 7%3B 'जां अम्बरपुडतलि तरणि रमइ, तां कमधजकन्ध न धगड नमइ'. verse 30th; . 'बहु बलकाक करइ बाहुब्बल. धन्धलि धगड धरइ धरगी तलि'. verse 39cd; 'धमक्कि धार छोडि धान छण्डि धाडि-धग्गडा. पडक्कि वाटि पक्कडन्त मारि मीर मक्कडा.' verse 45ab ; 'धारकट धारि धगड धर धसमसि धसमसि धुब्ब पडन्त .................. धुरि धसि धसि धूंस धरइ धगडायणि. धर वरि रुण्ड रलन्त' verse 53bd; 'पक्खरि पण्डर भिडस भिडन्तु धसि धगडायण चूंस धरन्तु' 56ab ; 580; 59%3; 614. Also vide Kānhadadeprabandha (1456 A.D.) of Padmanābha : 'भाजइ कंध, पडइ रणि माथां, धगड तणां धड धाइ। माहोमांह मारेवा लागइ, विगति किसी न लहाइ.' I.212.] cf. Mod. Guj. धगडो' a strong man, a bully'. f. a particular measure or weight. नव धडी हिरण्यस्य 40.1-2, तत्र चैत्यबलानके ९ धडी सुवर्णस्य चतुरस्रं कलशं ददौ। 32-33. cf. Guj., Hindi, Mar. धडी. f. N. of a musical mode. 79.3. cf. Guj. धनाश(स)री, धन्याश्री. m. an owner. के यूयम् ? । अस्य क्षेत्रधनिकस्य कमा। 32.9-10; प्रतापमल्लेन प्रधाना उक्ताः-कुमारः किं न स्थाप्यते ?, सोऽपि धनिकोऽस्ति । तैरुक्तम्-स्थापयत । असिबलेन तदा राज्यं जातम् | 39.14-15. cf. Guj. धणी ' an owner'. to catch hold of a debtor and keep him in restraint in order to secure the money. अन्यदा रममाणेनोक्तम्-द्रम्म ५०० यावत् क्रीडयध्वम् । द्रम्मान् ददामि, शिरो वा ददामि । तैरुपवेशितो द्यूतकारैः, तेन हारितम् । द्रम्मा याचिताः । रात्रौ श्रीवीरप्रासादे धरणकं दत्त्वा सुप्तेषु द्यूतकारेषु सिद्धः प्रासादभित्तेर्झम्पां ददौ। 105.30-32. cf. Guj. धरणुं देवं. धडी धनासी धनिक धरणकं । दा

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