Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) कई दिन तक ज्यों की त्यों कायम रहती है । इसी नियमानुसार अपवाद के हिमायती कुलिंगियों के मलिन हृदय में पलायन कर जाने पर भी उन चमत्कारों की कुड़कुड़ाहट अभी तक मिटी नहीं है, इससे उनने गोड़वाड़ की अन्ध- गोदडी में बैठ कर अपनी मलिन हृदय की जलन को गालियों से शान्त करना शुरु की है। ठीक ही है-“ संवक या भाट लान प्रयत्न करने पर भी अपने जजमान से कुछ नहीं पाते, तब वे उसके पुतलों पर अपने प्रात्मबल को निछगवल करके ही शान्त हो जाते हैं।" उद्देश "कारणमनुदिश्य मन्दोऽपि न प्रवर्तते-विना कारण मूर्ख भी प्रवृत्त नहीं होता, याने मूखों की प्रवृत्ति भी किसी कारण के लिये हुए ही होती है तो मर्मज्ञ बुद्धिमानों की प्रवृत्ति विना कारण कैसे हो सकती है ?, उसमें कोई मुख्य या गौण कारण अवश्य ही होता है । फर्क शिर्फ इतना ही है कि मूरों की प्रवृत्ति असभ्यता और स्वार्थपगयणता की पोषक है और बुद्धिमानों की प्रवृत्ति सभ्यता और परोपकारिता की द्योतक है।" जन साधु साध्वी अपनी वक्रप्रकृति के कारण अपवादी-कुलिगियों के समान हमेशा रंगकी झग-मगाहट में लग कर अपने संयम को बरबाद न कर बैठे और शोभादेवी के उपामक न बन जायँ इसीलिये श्रीमहावीर-शासन में साधु साध्वियों के लिये श्वेत, मानोपेत, जीर्णप्राय और अल्पमूल्य वस्त्र रखने की आज्ञा पाई जाती है। शास्त्रकारों की यह आज्ञा अथवा प्रवृत्ति निरर्थक नहीं, सार्थक है। वर्तमान For Private And Personal Use Only

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