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( ५८ )
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चेलेंजनिरीक्षण-
" संसार में कईएक मनुष्य ऐसे भी होते हैं. जो गिर चुकने, भाग जाने और सर्वप्रकार से हताश होने पर भी स्वयं बहादूर बनने के लिये अपने अन्धभक्तों का शरण लेकर जयशील होने का प्रयत्न करते हैं । अगर निष्पक्षपात होकर कह दिया जाय, तो ऐसे ही दुर्बल मनुष्यों के लिये संसार में 'मियाँ गिरे तो टंगडी ऊंची ' और ' मुक्की से पापड तोड़े, कच्चा तोड़ा सूत । मृत मक्खि के पंख उतारे, हम हैं बहादूर पूत ॥ ये कहावतें बनी हैं ।
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वस यही करत कुतर्कों से वादि होनेवाले महाशय आनंदसागर - सागरानंदसूरिजीने किया है। क्योंकि वे अपनी उज्ज्वल कीर्त्ति को पलायन और पराजयरूप कोयलों से काली किये वाद यद्वा तद्वा उन्मत्त प्रलाप करके चपेटिका के द्वारा जाहिर करते हैं कि
शास्त्रार्थ के लिये तुमको रतलाम में चेलेंज देने में आया था लेकिन तुमने शास्त्रार्थ से निर्णय करने के पेश्तर ही पराजय मंजूर कर लिया था. फिर भी तुमको शास्त्रार्थ में हाजिर होने का मौका हम लाते, लेकिन चौमासा उतरने के पेश्तर ही महाराजा रतलाम के दिवान साहब की तरफसे जज साहबने आकर इस्तिहारबाजी होने की दोनों पक्षवालों को मनाई की पृष्ठ-३६.
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महानुभाव ! अब तुम्हारी इस सत्य निर्बल पोपलीला को कोई सत्य मान लेवे यह स्वप्न में भी न समझों । क्योंकि उसी समय शासनप्रेमी विवेकचंद्र नामक श्रावक बम्बईसमाचार और
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