Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 72
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३९ ) तो समय समय पर शास्त्रीय शुद्ध मर्यादा का प्रकाश निर्भय रीति से किया और अब भी करते ही हैं, जिसके प्रभाव से पिशाचपं - डिताचार्य के अपवाद - पादोपसेविका वचन लेख और चरणों पर भवभीरू सज्जन महानुभावों को घृणा हुई होगी और होती ही जा रही है । -X(@K+उपसंहार. सत्यान्वेषी महानुभावो ! 'इस कुलिङ्गिवदनोद्गार - मीमांसा में शास्त्रीय और आधुनिक शासनप्रेमी - विद्वानों के सत्य प्रमाणों से सभ्यता पूर्वक हरएक विषय को परिस्फुट ( जाहिर ) किया गया है और जो कुछ बातें इसमें चर्ची गई हैं वे स्वमान या किसी को बुरा दिखाने के लिये नहीं, किन्तु शासनकी रक्षा और वास्तविक सत्य वस्तुस्थिति को दिखाने के लिये ही जानना चाहिये । शास्त्र - कार महाराज भी फरमाते हैं कि कोई चाहे राजी हो अथवा नाराज, लेकिन हित करनेवाली सत्य बात को कहे विना कभी नहीं रहना चाहिये । तथा च शास्त्रकारमहर्षि: --- रूस वा परो मा वा, विसं वा परित्त । भासिया हिया भासा, सपक्खगुणकारिणी ॥ १॥ दूसरा मनुष्य बुरा मान कर चाहे रोष करे या न करे अथवा जहर खाने को तैयार हो जाय तो भी स्वपक्ष में हित करनेवाली सत्य बात कहना ही चाहिये । For Private And Personal Use Only

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