Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 71
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६८) काम में लेना और पीतवर्ण वाला वस्त्र बिलकुल न रखना भी तो मानना चाहिये । क्योंकि श्रीविजयदेवसूरिजी महाराजने “કેશરિયું વસ્ત્ર હોય તો તેનો વપરાવર્તન કરી નાંખવું. બીજા ५ पीतवावासा न माढा' इन वाक्यों से साफ जाहिर कर दिया है कि-'साधुओं को वीरशासन में सफेद कपड़ा ही रखना चाहिये, लेकिन सफेद वस्त्र के न मिलनेपर कहीं केशरिया वस्त्र मिला, तो उसका वर्ण बदल किये विना काम में नहीं लेना चाहिये और पीले रंग का वस्त्र तो न लेना, और न ओढ़ना चाहिये ।' अतएव शास्त्र और प्राचार्यों की आज्ञा से यही बात अक्षरशः सिद्ध है कि----भगवान् श्रीमहावीर के वर्त्तमान शासन में शास्त्रों में कहे हुए कारणों में का कोई कारण नहीं है और यतियों की शिथिलता का कारण शास्त्रोक्त नहीं है । इसलिये साधु साध्वियों को शास्त्रोक्त मर्यादा से अल्पमूल्यवाला सफेद वस्न रखना ही निर्दोष है। ____ अब रही पिशाचपंडिताचार्य की यह आशंका कि केशग्युि वस्त्र होय तो इस वाक्य से केशरिया वस्त्र रखते थे और वहरते थे' सो निर्बलता और पिशाचता की द्योतक है । पट्टक के पेश्तर या उसी समय में केशरिया कपड़े रखते और लेते थे इससे यह शास्त्र--- विहीन प्रणाली सत्य और ग्राह्य नहीं मानी जा सकती। जिस प्रकार आज रोज आपलोग अपनी शिथिलताओं को अपवाद की पछोड़ी में छिपाने का दुराग्रह कर रहे हो, उसी प्रकार उस समय में भी दुराग्रह के वश शास्त्र-विरुद्ध केशरिया वस्त्रों के पीछे चारित्र को बरबाद करनेवाले अवश्य होंगे परन्तु शासनरक्षक प्राचार्योने For Private And Personal Use Only

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