Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 65
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६२) शास्त्रार्थ के लिये कभी योग्य माने जा सकते हैं ? नहीं ! नहीं !! कदापि नहीं ! ! !. शास्त्रार्थ के लिये तो ऐसे क्षेत्र होना चाहिये कि जहाँ किसीके पक्षपाती न हों, अथवा दोनों पक्ष के लोग हो । लेकिन जिन्हें खाली शास्त्रार्थ का डौल दिग्वा कर केवल अंधभक्तों में यद्वा तद्वा के जाप से और जैसे को 'जस' व पौप को 'पाप' लिखके झूठी वाह वाह कगना हो. उन्हें पत्नपात रहित अथवा उभय पक्ष के सभ्य लोगों से मतलब ही क्या है ? वे नो अपने भोपों के शरण में ही रहना पसंद करेंगे । ___ चार वार तो आनंदसागर ( सागगनंदसूरि ) जी रतलाम, सेंवलिया और मक्षी से शास्त्रार्थ की मंजूरी देने पर भी अपवाद से रंगीन कपडे सिद्ध करते करते आखिरी टाइम पर गत्रि को ही पलायन करके कूच कर गये और कलकत्ते जाकर सांस लिया । तो जिसकी जगह जगह से वार वार आखिरी टाइम पर भगजाने की आदत पड़ चुकी है वह फिर भी खुद की प्रतिज्ञा के लिये टॉय टॉय फिस् बोल जाय तो कौन ताजुब की बात है ?. इतना ही नहीं, किन्तु देवद्रव्य की चर्चा में विजयधर्ममूरिजी के साथ, अधिकमास की चर्चा में खरतर गच्छीय मणिसागरजी के साथ, सामायिक में पिछली ईरियावहिया की चर्चा में कृपाचन्द्रसरिजी के साथ, और त्रिस्तुतिविषयक चर्चा में पं० तीर्थविजयजी के साथ में शास्त्रार्थ का हल्ला मचाते हुए आखिरी टाइम पर आनंदसागरजीने पलायन का ही रास्ता पकड़ा था। ठीक ही है जिसके भाग्य-फलक में जगह जगह से पलायन करना ही लिखा है, वह शास्त्रार्थ के अयोग्य ही है । समझो कि-ऐसे लोगों की दौड़ For Private And Personal Use Only

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