Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६५ ) पदार्थ से वस्त्र को धो लेने में कोई भी दोष नहीं है । क्योंकि चूर्णिकार महाराज ' खदिर बीयककादीहिं य पुणो पुणो धोव्वमा' तथा 'ara aकादिणा ' इत्यादि वाक्यों से कल्कादि से धो लेने का ही विधान करते है, रंगने का नहीं । अतएव चपेटिका के लेखक का 'रंगसे वस्त्रों की आज्ञा दी है यह वाक्य कैसा असंगत और झूठा है, क्योंकि न तो रंगसे वस्त्र धोये जाते हैं ' इत्यादि सभी उन्मत्त - प्रलाप निष्फल ही है । वर्णसिद्धिकार का जो लेख ऊपर दर्ज हैं उसमें एक बात बड़े महत्त्व की जाहिर होती है । वह यह कि जिन्हों के पीछे देवदेवियों का उपद्रव लगा हो, जिन्हों को पूरी गोचरी खाने को न मिलती हो और जिन्हों पर राजा रुपमान हुआ हो उन्हीं के लिये विवर्ण वस्त्र रखने का भाष्यकार फरमा रहे हैं, तो जान पड़ता है कवाद के हिमायतियों के पीछे ये कारण अवश्य लगे होंगे ? इससे ये लोग faar के लिये इतना दुराग्रह कर रहे हैं और अर्थों का अनर्थ करते भी नहीं लजाते । दूसरी बात चपेटिका के लेखक की यह है कि--- भीमसिंह माणेकाळी सज्झायमाळा में तो ऐसा पाठ है कि'कालो कपडा खंभे धावली, कांख देखाड़ी बोले ' अर्थात् वहां तो काले कपड़ेवाले को कुगुरु कहा हैं लेकिन रंगीन कपड़ेवाले का नाम ही नहीं हैं. ' रंगेल ' ऐसा शब्द तो......मूंठा लिखा है. पृष्ट-८. मान्यवर ! आपकी फेरफार की हुई भीमसिंह माकवाली सज्झायमाला में चाहे सो लिखा गया हो । परंतु प्राचीन लिखे For Private And Personal Use Only

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