Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही काम है. ये लोग अगर ऐसा अनर्थ न करें तो फिर तमस्तमां का अतिथि कोन बनें ?. इस गाथा से चपेटिका के लेखक महाशय यह सिद्ध करना चाहते हैं कि यह गाथा वस्त्र के वर्ण परावर्तन को दिखानेवाली नहीं है । इसलिये इसके उत्तर में हम विशेष उल्लेख न करके लेखक के परम मित्र वस्त्रवर्णसिद्धि कार का चपेटा लगा देना ही उचित समझते हैं । वह यह है कि भाष्यकार महाराजने वर्णपरावर्तन का कारण यह कहा है असिवे ओमोयरिये, रायगुट्टे भए व गेलने । सेहे चरित्त सावय, भए य गहणं तु जयणाए ॥१॥ भावार्थ-अशिव, ऊनोदरी, राजद्वेष, भय, व्याधि, शैक्षक, चारित्र अथवा पशु आदि जानवर के भयसे यतना पूर्वक ग्रहण करना, इति । वस्त्रवर्णसिद्धि-पृष्ठ ७४-७५. "दैव दैवियों का उपद्रव हो या ऊनोदरी हो याने गोचरी पूरी न मिलती हो, राजा द्वेषी हो, किसी का भय हो, अथवा कोई शारीरिक व्याधि हो ऐसे समय वस्त्र पात्र का रंग पलटना । ” देखो ! वस्त्रवर्णसिद्धि पृष्ठ ७४ पंक्ति ७. इस लेख से हमारा वही सिद्धान्त निर्विवाद सिद्ध हो जाता है कि-"असिवे प्रोमोयरिए रायढे भए व गेलन्ने ।" इत्यादि भाष्यकारोक्त कारणों के उपस्थित होने पर कल्कादि वर्णक For Private And Personal Use Only

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