Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५६) अर्थ को कहते हैं, तो कहना, प्ररूपणा दोनों शब्दों का मतलब एक हुआ या नहीं ? और इससे ऐसा सिद्ध होने में क्या कसर रही कि-तीर्थंकर महाराज के कहे हुए अर्थों को गणधर आदि सूत्र रूप से गुम्फित करते हैं, वे सुत्र तीर्थंकर के प्ररूपित (कहे हुए) और गणधरों के रचित हैं। पर अनृत कुतर्कों से वादि होनेवाले पिशाचपंडिताचार्य को ऐसा अर्थ भासमान कहांसे होवे ? पू०-समझना चाहिये कि शास्त्र में वस्त्र का सारा ही अधिकार पात्र के समान कहा है तो पात्र रंगने की जहाँ आज्ञा मिलेगी वहाँ ही वस्त्र रंगनेकी आज्ञा हो जायगी कि नहीं ?. पृष्ठ-३३. उ०—महानुभाव ! अच्छी तरह समझ लिया कि जिन शास्त्र निर्दिष्ट कारणों पर पात्र को रंगने की आज्ञा है, वह ठीक है और उसके अनुसार पात्र को रंग लेना निर्दोष है । परन्तु निशीथसूत्र, चूर्णि, भाष्य और टीका में वस्त्र का अधिकार पात्र के समान होने पर भी जो कारण बतलाये गये हैं. उनमें यतिशिथिल हुए उनसे जुदा भेद दिखाने, अथवा दुराचारी-यतियों से शासन को बचाने के लिये वस्त्र रंगना या रंगे हुए वस्त्र रखना चाहिये इस भाव का दर्शक कोई कारण नहीं है; इसलिये इस कारण को मान कर शास्त्र में वर्णपरावर्तित वस्त्र रखने की प्राज्ञा वर्तमान में नहीं है। इसी प्रकार 'अप्पत्तेचिय वासे०' इस पिंडनियुक्तिसूत्र और 'अप्राप्तवर्षादौ ग्लानावस्थायां' इस आचारांगटीका के अनुसार वर्षाकाल के नजदीक के टाइम में सर्व उपधि को धो लेना; ओर For Private And Personal Use Only

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