Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२) बने हुए सूति और ऊन के बने हुए ऊनी; ये दो जाति के श्वेत वस्त्र उत्सर्ग से साधुओं को ग्रहण करने योग्य हैं और इनकी अप्राप्ति में शेष तीन जाति के वस्त्रों का ग्रहण आपत्रादिक है। वर्तमान समय में सूत और ऊन के कपड़े सर्वत्र मिलना सुलभ हैं, अतएव साधु साध्वियों को शेष तीन प्रकार के श्रापवादिक वस्त्र लेने की कुछ भी आवश्यक्ता नहीं जान पड़ती।" पाठक महानुभावो ! उपरोक्त मन्तव्यों में से शुरुआत के दो मन्तव्यों के लिये शहर रतलाम में मुनिकपुरविजयजी के मार्फत सागरानंदसूरिजीने शास्त्रार्थ करने की मांगणी की, जिसकी उनको मुद्रित प्रतिज्ञा-पत्र के साथ मंजूरी दी गई थी। लेकिन प्रतिज्ञा-पत्र से घबरा कर उनने ( सागगनंदसूरिने ) शास्त्रार्थ के रूपक को हेन्डविलों के रूप में परिणत किया। इसी रूपक को लक्ष्य में रख कर दोनों तरफी हेन्डविल निकलने के दरमियान में ही चपेटिका के लेखक महाशय अखीर में टॉय टॉय फिम बोल गये । हेन्डबिल किसने रोकाये ? શહર રતલામમાં જૈનચર્ચાનું પરિણામ– લગભગ સાત મહીનાથી રતલામ (માલવા) શહેરમાં શ્રી શ્રી ૧૦૦૮ જૈનાચાર્ય ભટ્ટારક શ્રીમદુ-વિજયરાજેન્દ્રસૂરીશ્વરજી મહારાજના શિષ્ય વ્યાખ્યાનવાચસ્પતિ શ્રીમાન યની દ્રવિજયજી १ इस शास्त्रार्थ का पूरा इतिहास जानने की इच्छावाले सजन महानुभावों को रतलाम में शाखार्थ की पूर्णता' और ' शाखार्थदिग्दर्शन' नामकी दोनों किताबें आद्योपान्त वांचना चाहिये । For Private And Personal Use Only

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