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देखने या समझने की जरूरत ही क्या है ?, उन्हें तो खाली प वाद की माला से काम है ।
पू० -- मलमलिन वस्त्र से लोगों के चित्त में ग्लानी होवे उसको दूर करने के लिये वस्त्र धोना यह तो मंजूर है और अना चारियों से सारे शासन का खोज मिल जाय तब भी रक्षा के लिये वर्ण परावर्त्तन मंजूर नहीं ?. पृष्ट - १६.
उत्त०.
- महानुभाव ! मलमलिन वस्त्र से जीवोपघात और श्रोताओं ( लोगों ) के चित्त में ग्लानी होना स्वाभाविक है । यतः वैसे मलिन को धो लेना तो शास्त्रसम्मत है, इसलिये वह सब कोई को निर्वाद मंजूर करना पड़ता है । परन्तु यतिशिथिल हुए उनसे जुदा भेद दिखाने के लिये व परावर्तन करना शास्त्रसम्मत नहीं है, अतएव वर्ण परावर्त्त की शास्त्र-विहीन बात कैसे मंजूर की जाय ?, हां अलबत्तां इस बात को वे लोग मंजूर कर सकते हैं जो कारण को कारण मानकर शासन का खोज मिलाने के लिये रात दिन रंजनादि प्रवृत्ति में लगे रहेते हों ।
आजकल वर्ण परावर्तन की प्रवृत्तिने शासन का कैसा खोज मिलाया है ? इसको जानने के लिये इसी पुस्तक के ' यह शासन रक्षा के भक्षा' हैंडिंग के नीचे दिये हुए शासन-प्रेमियों के फिकरे वचना चाहिये और अव भी शासनप्रेमीयों के इस विषय में कैसे उद्गार निकल रहे हैं. उनको भी देखिये ! --
જેમ નાતરાંની છૂટ જે કામમાં હાય, તે કેમની સ્રીયા સ્વ
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