Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४४) इसके सिवाय भैंस श्रादि के चमडे की नाड़ी का घर्षण होता है सो यह सर्व पंचेन्द्रिय पिंड हो जाता है। ऐसे गाडी के पइये का कीट लेकर जो लेप करता है उससे यह उपयोगी है। वस्त्रवर्णसिद्धि-पृष्ट ६८. पाठको ! इसी प्रकार ओघनियुक्ति, और निशीथसूत्र भाष्य-टीका चूर्णि आदि शास्त्रों में भी पाव के लिये नाना लेपों की उपयुक्तता दिखलाई गई है । इसलिये पात्र में लेप लगाना अनुचित नहीं, उचित ही है। लेकिन वस्त्र रंगने के या रंगे हुए लेने के जो कारण शास्त्रकारने बताये हैं उनमें यतियों की शिथिलतारूप कारण नहीं बताया गया, अतएव वीर शासन में वस्त्र को रंगने की और रंगे हुए वस्त्र रखने की प्रवृत्ति अनुचित ही मानने लायक है। आगे चपेटिका के लेखक पिशाचपंडिताचार्यने पीतपटाग्रहमीमांसा के पृष्ट २७ से ३५ तक में आये हुए निशीथसूत्र व चूर्णि के विस्तृत लेख के लिये अपनी हार्दिक मलिनता को उगलते हुए भी मुद्दे की बात पर कुछ भी नहीं लिखा । परंतु “ पापीपिशाच, पेटभरने के लिये जन्म पाये हुए, कुतर्कानृतवादी, कुतर्कान्धवादी, कुटिलमति, अज्ञान का अंधेग छाया हुआ, अज्ञानी, अधर्मी, आग्रहावृत, मूर्ख, उन्मार्गगामी, अपनी मनसा ही कच्चे जल से धोने की, विचारा, नरक में जानेवाला, " इत्यादि वाक्यों से बारंबार पुनरावृत्ति करके चपेटिका के कोई पांच पेज काले किये हैं, जोकि लेखक की पिशाचता के दर्शक For Private And Personal Use Only

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