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है, जो विशेष शोभा की कारण बन कर मोहक-पदार्थों पर अपना प्रभाव डाले विना नहीं रह सकती । कहिये ! फिर वह झलक क्या अपवादियों को मौज-मजाह उडाने में मददगार नहीं होगी ?, धन्य है महाशय ! तुम्हारी झलक गमाने की विधि को, और धन्य है आपके अकलमंदी आदमी पन को कि जिसके जरिये नये वस्त्र को झलक गमाते गमाते रंगने से दूनी झलक और शोभा के कामी वना दिये गये ।
पू०-कामशास्त्र के हिसाबसे जब उस सफेद वेषवाला कामी गिना गया है तो यह ऐहिक कामना का विषय यह सफेद वस्त्रवालों को क्यों नहीं लागु हुआ और इसीसे शास्त्रकारने भी सफेद वस्त्रवाले को वकुश में ही गिना है और सफेद वस्त्र पहन कर पडिक्कमणा करनेवाले को द्रव्य आवश्यक करने वाला ही कहा है. पृष्ठ २६.
उ०-मालूम पडता हैं कि लेखकने पालीताणा की अंधारी जिस कोटडी में कामशास्त्र का शान्तिपाठ पढाया था, उसीके याद पाने से अथवा वैसे ही प्रसंग में बैठे हुए सफेद वस्त्रवालों पर ऐहिक कामना का विषय लागु किया है । पर पिशाचपंडिताचार्यजी ! खूब अच्छी तरह समझलो कि सफेद वखवाले तो किसी अपेक्षा से वकुश में भी गिने जा कर, उनका प्रतिक्रमण द्रव्य
आवश्यक में भी गिना गया है, लेकिन रंगीनवस्त्रवाले जो अकारण को कारण बना कर मूलगुण को बरबाद करने में भी नहीं लनाते और जिनके लिये शासनप्रेमियोंको काले वावटों की तैयारी
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