Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४८) अतएव वीरशासन में वक्रजड साधु साध्वियों को वर्ण से सफेद, मूल्य से थोड़ी कीमतवाला, जीर्णप्राय से जूना नहीं, पर जूने के समान, और शुद्ध से निर्दोष आदि विशेषणवाले वस्त्र ग्रहण करने या रखने की आज्ञा दी गई है। जो वस्त्र मूर्खा, भय, अभिमान और अधिक मूल्य के कारण हों वैसे वस्त्र रखने और लेने के लिये साधुओं को आज्ञा नहीं है। हां अलवत्तां उक्त प्रकार के सितादि विशेषणवाले वस्त्र कहीं हाथ न आवे और वस्त्र रहित रहने की सामर्थ्य न हो, तो उस साधु के लिये न्यूनाधिक विशेषणवाले वस्त्र भी अभावदशा में ग्रहण कर लेना निर्दोष समझा जा सकता है। परंतु वर्तमान समय में शास्त्रोक्त विशेषणवाले वस्त्रों की सर्वत्र सुलभता है, अतएव श्वेत, मानोपेत, जीर्णप्राय, शुद्ध और अल्पमूल्य आदि विशेषण विशिष्ट ही वस्त्र साधु साध्वियों को ग्रहण करना चाहिये । ___ “पू०-रंगने ( रंग बदल करने ) से नये वस्त्र की नवीनता नहीं चली जाती. इस जगह पर सोचने का है कि किसने कहा कि रंगने से नवीनता चली जाती हैं, लेकिन अकलमंद आदमी अच्छी तौर से समझ सक्ता है कि सफेद नये वस्त्र को रंगने से नये की झलक चली जाती है. पृष्ठ-२८. उ-प्रियवर मित्र ! आपकी मंद अक्ल के खजाने को देख कर विचारने से यही मालूम हुआ जब नये वस्त्र की रंगने से नवीनता नहीं जायगी, तब भला उसकी झलक भी कैसे चली जायगी ? क्योंकि नये कपड़े को रंगने से पहले की अपेक्षा दूनी झलक आ जाती For Private And Personal Use Only

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