Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५२) शपातनी वास। २पाय छे. * * * * यार त अट थया છતાં તેનું પંન્યાસપદ કાયમ રહે ને હજાર હજાર રૂપિયા પચાસપદ આપતાં રેકડલે. શ્રાવકે જેમ દીકરી વેચી દ્રવ્ય ઉપજાવે તેવી દશા થાય છે, । पु० ११, अं४ ३८, ता. २८-८-१८. महानुभावो! कहो, आपके वर्ण परावर्तित वस्त्रवालों की क्या इसी योग्यता को पूजने लायक और त्यागी मानी गई है ? अगर ऐसे ही आपके घर के साधु पूजने लायक और त्यागी गिने जायँ . तो फिर संसार में त्यागियों को ढूंढने की या त्यागियों का स्वरूप आनने की आवश्यकता ही न रहेगी । अतएव ऊपर मुताबिक सत्य वस्तुस्थिति को प्रकाशित करनेवाले शासनप्रेमियों के लेखों को यदि कोई अपवादसेवक निन्दा समझ लेवे, तो इस विषय में हम निरुपाय हैं, अर्थात् इसके प्रतिकार का हमारे पास कोई उपाय नहीं है। सत्य है कि ऐसे पूजने लायक और त्यागी माने जाने वालों के लिये 'धत्तेऽथ पीतं पटमूर्ध्वदेशे, शुक्लं कटौ मोदकमीहमानः' विद्वानों का यही शिरपाव दे देना युक्ति-युक्त है । पू०-भाष्यकार महागज शरीर के एक भाग में या सर्वभाग में सफेद कपडे रखने वाले को वकुश गिनते हैं, और इधर ही मरीचि वचन में पृथ्वीकायका भेद जो गेरुक है उससे रंगनेवाले को काषायिक दशा दिखाई है. न कि सर्व रंगनेवाले की; इतना ही नहीं लेकिन कषायवाले को कवायला वस्त्र रखना यह शास्त्रकार का सिद्धान्त होवे तो जरूर क्षपकश्रेणी लगाकर अकपाय दशा न होवे तब तक अकपायित वस्त्र रखने की ही आज्ञा होना चाहिये पृष्ठ-३१. For Private And Personal Use Only

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