Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उ०—प्रियवर ! आपके पक्ष का समर्थन करने के पेश्तर हम यह पूछना चाहते हैं कि सर्वमान्य भगवान श्रीऋषभदेवस्वामी और श्री महावीरस्वामी के शासन में जो साधु साध्वी एकदेश या सर्वदेश से शास्त्रोक्त मर्यादा पूर्वक शरीर पर सफेद कपडे रखते थे वे क्या आपके भाष्यकार के हिसाब से वकुश गिने जाना चाहिये ? यदि कहा जाय कि नहीं. तो फिर आपके सिवाय ऐसा कौन दुर्बुद्धि है जो शास्त्र मर्यादा से सर्वदेश या एकदेश से शरीर पर सफेद वस्त्र रखने वाले शासन नायकों को वकुश में गिनने का साहस करे ? आश्चर्य है कि पिशाचपंडिताचार्य के भाष्यकार में जीर्णोद्धार के बहाने से इकट्ठी की हुई रकम से चा, दूध, सीग, पूडी खानेवाले उपधान के बहाने मेवा मिष्टान्न डटके उड़ानेवाले, तस्करवृत्ति से लोगों के लडके उड़ा ले जाने वाले, और केशरिया वागाओं में छिपकर अनाचार करनेवाले शोभादेवी के उपासक भ्रष्टाचारी तो वकुश की गिनती में नहीं है; पर जो वीरशासन की शुद्ध परम्पर!नुसार श्वेत वस्त्र के धारक, साधुयोग्य संयम क्रिया में दत्तचित्त, अनाचार और गाडी वाडी लाडी के प्रेम से बिलकुल अलग रहनेवाले साधु हैं वे वकुश की कोटी में गिने गये हैं । पाठको ! आप समझ सकते हैं कि पिशाचपंडिताचार्य का भाष्यकार कितना विलक्षण हैं ? जो संयमी-श्रमणों को पतित और अनाचारियों को उच्चतम दिखाता है। अब सोचिये इससे अधिक फिर उन्मत्त प्रलाप क्या हो सकता है ? अतः ऐसे उन्मत्त प्रलापियों को मिथ्यादृष्टि कापायित वस्त्र वाले सर्वदेशी तापसों से भी कनिष्ट कह दिये जायँ तो अतिशयोक्ति नहीं है। भला ! सोचो तो सही कि मरीचि के वचन में शास्त्रकार For Private And Personal Use Only

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