Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४७) નિર્વાહવું હતું કારણ કે તેમણે દીક્ષા પૈસા લેવાવાસ્તે લીધી छ शु? जैन पु० १६, ५४ ३५, ता० १-८-१८. ___ बस समझलो कि शासनप्रेमी के ऊपर के लेख से शासननिन्दकपने की आदत किसकी होगई है और ऐसे शासन की निन्दा करानेवालों को क्या कहना चाहिये ?, हमारी राय से तो शासन के ध्वंशक और दीर्घसंसारी । दर असल में इसी बात को उत्सर्गमार्ग को छोड कर उन्मार्गगामी होना समझना चाहिये. आगे पिशाचपंडिताचार्यने चपेटिका के २७-२८ वे पेज में अपनी मानसिक मलिनता का दृश्य दिखा कर चलती हुई मूल वात को उड़ा देने के लिये जीर्णप्राय शब्द के मार्मिक अर्थ को समझ लेने के वास्ते आजीजी की है। इसलिये लेखक की आजीजी को लक्ष्य में रख कर जीर्णप्राय शब्द के विषय में इतना युक्तियुक्त खुलासा कर देना चाहिये कि-- संयमयात्रा सुख पूर्वक निर्वाह हो, इस हेतु से साधु साध्वियों को वस्त्र रखने की प्राज्ञा हुई है। इसलिये जिन शास्त्रकारोंने धवल, जीर्णप्राय, अल्पमूल्य, और शुद्ध आदि वस्त्र के विशेषण दिये हैं, उनके कथन से उन्हीं विशेषण विशिष्ट वस्त्र ग्रहण करने का अभिप्राय जाहिर होता है और जिन ग्रन्थकारोंने केवल धवल, जीर्णप्राय वस्त्र ही रखने का लिखा है। उनने जीर्गाप्राय शब्द से ही वस्त्र की काल्पार्थता को प्रदर्शित कर दी है। क्योंकि जो वस्त्र सादा, और अभिमान-दर्शक नहीं है वह अल्पमूल्य ही होता है। For Private And Personal Use Only

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