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सिवाय रंगीन वस्त्र रखना, या करना दोष रहित नहीं होने से मान्य नहीं करना चाहिये ।
दूसरी बात यह कि वस्त्र और पात्र को न धोने में और पात्र को निर्लेप रखने में जीवहिंसा होने की संभावना है, इसीसे शास्त्रकारोंने वस्त्र पात्र को धो लेने की और पात्रलेप की जो आज्ञा दी है वह जीवरक्षा के लिये ही है। वस्त्र धावनविषय का खुलासा पेश्तर किया जा चुका है । पात्र लेप के विषय में देखो ! ' वस्त्रवर्णसिद्धि' में श्रालेखित ८२ नम्बर का ही प्रमाण-पाठ
स च लेपमधिकृत्योपदय॑ते-इहाक्षस्य धुरि म्रक्षितायां रजोरूपः पृथ्वीकायो लगति, नदीमुत्तरतोऽप्कायः लोहमयावपनघर्पणे तेजस्कायः यत्र तेजस्तत्र वायुरिति वायुकायोऽपि वनस्पतिकायो धुरेव द्वित्रिचतुरिन्द्रियाः सम्पातिमाः सम्भवन्ति, महीप्यादिचर्ममयनाडिकादेश्च घृष्यमाणस्यावयवरूपः पश्चेन्द्रियपिंडः इत्थंभूतेन चाक्षस्य व्यञ्जनेन लेपः क्रियते इत्यसावुपयोगी।
-लेपका अधिकार बताते हैं- प्रथम तो उस गाड़ी के पइया में रजरूप पृथ्वीकाय लगता है, द्वितीय नदी उतरते पानी अप्काय लगता है, तीसरं लोहे की लाठ ( धूग ) घीसने से अग्निकाय लगता है और जहाँ तेज का प्रभाव है वहाँ वायु होना ही चाहिये, और फिरता हुवा पझ्या स्वयं वनस्पतिकाय का बना है । बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौरेन्द्रिय, जीव उसमें गिरने का संभव है।
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