Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 45
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५२) परम मित्र की औरसे वस्त्रवर्ण की सिद्धि में लिखा गया है.। पृष्ट १६-२०. उ०—प्रियवर ! आपके परम मित्र के नाम पर गिरवे रक्खी हुई 'वस्त्रवर्णसिद्धि' नामकी पुस्तक शुरु से अखीर तक देखी । उसमें अंधभक्तों को कहने मात्र के लिये तो सौ प्रमाणों की भरमार की गई है । लेकिन उनमें ' गाड़ी लाड़ी वाड़ी के प्रेमि यतियों से जुदा भेद दिखाने के लिये महावीर वेश का परावर्तन कर डालना चाहिये ' ऐसे भाव का दर्शक एक भी प्रमाण-पाठ नहीं है। अतएव वीरशासन में साधु साध्वियों को नियुक्ति भाष्य और चूर्णिकारों की आज्ञा से वस्त्र का धो लेना तो अच्छा है; परन्तु अकारण को कारण बनाकर रंगीन वस्त्र का रखना या वस्त्र को रंगना वीरशासन में अच्छा नहीं है। पू०-वस्त्र और पात्र के लिये जो शास्त्रकाग्ने कलकादि (रंग) फर्माये हैं वह मान्य क्यों नहीं करना चाहिये ? दूसरे शब्दों को छोड़ दो, लेकिन वर्ण शब्द मे पांचों ही रंग आ जाते हैं, यह तो सोचना था. पृष्ठ-२०. उ०-महाशय ! अच्छी तरह सोच समझ कर ही कहा जाता है कि कारण उपस्थित होने पर पात्र को कल्कादि से शास्त्र में बताई हुई रीति के अनुसार जीवरक्षा के लिये यतना पूर्वक रंग लेजा निर्दोष है । परन्तु वर्ण शब्द से पांचों ही रंग का ग्रहण होने पर भी वीरशासन में सत्ती और ऊनी सफेद कपड़े के For Private And Personal Use Only

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