________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ३० )
! अपवाद
से वस्त्र को धो लेने की
उत्तरपक्ष- - महानुभाव आज्ञा शास्त्रों में दी हुई है, इससे उसे मनहठ नहीं कह सकते । मनहठ तो वही कहानी है जो शास्त्रों में दिखलाये हुए कारणों के सिवाय शास्त्रों की आज्ञा के बिना अपनी कपोल-कल्पना से यतियों की शिथिलता का बहाना लेकर अपवाद के नाम से केशरिया और पील किया की मौज उडाई जाय । वर्त्तमान में शास्त्रोक्त कारणों मैं का कोई कारण न होते हुए भी निष्कारण हमेशा पीले फेन्सी पहनना और कहना कि टीकाकारने शुक्ल छोडने का कहा है, बस ऐसी ही कूटनीति का नाम मनहठ समझना चाहिये । - हाथ पैर धोने में अपवाद गिने तो रंगने में क्यों नहीं पू०माने ? एवं इसीपाट से वस्त्र का रंगना उत्तर गुण में हर्जा डालता हैं, नहीं कि मूलगुण में या सम्यत्तत्व में । पृष्ठ - १४.
----
उत्तर प० - ज्ञानाशातना टालने के लिये अशुची से भरे हुए हाथ पैरों को धो लेने में शोभा नहीं है । शोभा है तो केशरिया, या पोले रंगीन वस्त्रों के निष्कारण हमेशा रखने में । सूत्रकृताङ्ग के नौवें अध्ययन की टीका के पाठ में उत्तरगुण की पेक्षा से शोभा के लिये हाथ पैर का धोना वरजा गया वह असंगत नहीं है । परन्तु विना कारण रंगीन वस्त्रों का हमेशा रखना तो शोभा का कारण होने से असंगत ही है । और जो यतियों की शिथिलता को आप लोग कारण बतलाते हैं वह शास्त्रोक्त न होने से मानने लायक नहीं हैं । प्रियवर ! जिस कार्य के लिये शास्त्रों की आज्ञा नहीं है उस कार्य को शोभा के निमित्त आचरण करना इसमें बडा
For Private And Personal Use Only