Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९ ) कारगा शुद्ध संवेगी शब्द को ऐसा नष्ट-भ्रष्ट बना डाला है कि जिसके सामने विगड़े हुए यति शब्द को भी लज्जित होना पडता है और हाथ में काले वावटे लेना पडते हैं । कुलिंगी मित्रो ! क्षमा करना, नाराज होने की कोई जरूरत नहीं, हमारी सत्य बोलने की आदत होने से हमारी कलमने भी उसका अनुकरण कर लिया है, इससे वह सत्य को दिखाने में विराम नहीं ले सकती | आप लोगोंने अपवाद के नाम की माला फेर कर बहुत दिन तक रंगविरंगे राज्य का मजा लूटा | पर छात्र जमाना बदल गया है, उसने तुम्हारी पोलमपोल की फाकंवाजी को चिरकाल तक सहन की । लेकीन कब उसने संभलकर आप लोगों की एक के पीछे एक कूटनीति को ढूंढ ढूंढ के सभ्य समाज की कसोटी पर चढाना शुरू कर दी है । अतएव आप लोगों को कहीं उसके तरफ से व अनन्त--संसार वृद्धि का खिताब न मिल जावे ? इस बात की सावचेती पूरे तौर से रखना चाहिये | कुलिंगियों की कुतकों पर विचार गे चलकर चपेटिका के लेखकने चपेटिका के पृष्ठ १२, पंक्ती १४ से समाप्ती तक वस्त्रधावन और रंजनवस्त्र विषयक जो हार्दिक बगलें निकाली हैं उनका भी पूर्वपक्ष सहित क्रमशः वास्तविक उत्तर सुनिये -- पूर्वपक्ष-धोना अपवाद से है तो फीर रंगने में उत्सर्ग अपवाद नहीं समझना यह अपनी मन हठ है या और कुछ ?, याने जैसे शास्त्रमें धोने का अपवाद कहा है बेसै रंगने में भी है, पृष्ठ - १२. For Private And Personal Use Only

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