Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01
Author(s): Sagaranandvijay
Publisher: K R Oswal

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) मार्थनः उक्त पुस्तक उन्हींके मुख पर चपेटा लगानेवाली है। वाह वाह वापा ! : कैसा सुंदर चमत्कारपूर्ण मार्मिक-अर्थ । यह तः वही कहावत लागु पड़ी कि 'जिसकी लाठी उसीका शिर ।' लेखक की बेसमझी___“आज कल के लेखकों में यह बड़ा भारी दोष पाया जाता है कि वे कत्ता के सिद्धान्तों ( मन्तव्यों ) को विना समझे ही टॉय टाँय फिस् के घोड़े दौड़ाने लगते हैं और इस निबल से निबल घुड-दौड़ से आश्विर उनके लिये पलायन का डंका बजने लगता है । फिर वे पीछे से अपने सहायकों समेत गोड़वाड़ की अंधगुदड़ी का सहारा लेकर चाहे कितना भी उन्मत्त-प्रलाप करें, पर उन कायगें की आह पर कोई भी मभ्य ध्यान नहीं देता।" इसी नीति का अनुकरण चपेटिका के लंग्वकने किया है । वह जिस चमत्कार पूर्ण पुस्तक के विषय में अपनी आँते उंच चढा कर, उन्मत्त-प्रलाप कर रहा है, उसके कता का कथन क्यः है ? उसने जनता के सामने किस मन्तव्य को रक्खा है ? उसकः प्रतिपादन किस प्रतिपादा-विषय के लिये है ? और उम्मका यह प्रयत्न किस व्यक्ति के लिये हुआ है ? इन बातों का पता चटिका के लेखक को अभी तक नहीं लगा। इसीसे उसके मारे प्रलाय. सारं अंडवंड लेख और सारे कुटिल उपाय टॉय टाँय फिस् का रूप धारण कर लेते हैं। ठीक ही है-"निर्बलस्य कुता बलम्।" हमारा मन्तव्य ..." वर्तमान काल में भगवान श्रीमहावीरस्वामी का For Private And Personal Use Only

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