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( २४ )
रंगीन कपड़ों का आग्रह न रख कर विवर्ण ( रंगीन ) वस्त्र पहिन - नेवाले श्वेत वस्त्र में ही धर्म मानते हैं। इस फलितार्थ से भी वही बात जाहिर हुई जो ऊपर दिखलाई जा चुकी है ।
हमे आश्चर्य है कि जब चपेटिका के लेखक और उसके पिशाaisaार्य को रंगीन कपड़े पहनने का और रंगीन में धर्म मानने का आग्रह नहीं है तो व्यर्थ ही में क्लेश बढ़ाने के लिये चपेटिका को प्रसिद्ध कराके प्रतिचपेटा खाने का अभिलाष या प्रयत्न क्यों किया गया ? इस अभिलाष या प्रयत्न का नाम आग्रह ( हठाग्रह् ) नहीं तो और क्या हो सकता है ?, कुछ नहीं ।
जमाना बदल गया
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इस बुद्धिवादगम्यमय जमाने में बाबा वाक्यं प्रमाणम की छिपी धूर्तता का किला अब खड़ा नहीं रह सकता । श्रत्र तो उन्हीं बातों को स्थान मिल सकता है जो शास्त्रीय प्रमाण- पाटों के सत्य वाणों का तृगीर जिनके हाथ में हो । "
चपेटिका के लेखक को भी विवस होकर जिन सफेद कपड़ों. का महावीर शासन में अस्तित्व मान के उसमें धर्म मंजूर करना पड़ा है। उसी की सिद्धि के लिये जैनागम और प्रामाणिक जैनग्रन्थों के प्रमाण - पाठ पवलिक ग्राम में हिन्दी अनुवाद के सहित जैन पिटनिर्णय नामक पुस्तक के द्वारा प्रकाशित ( जाहिर ) हो चुके हैं, जिनके लिये अनेक विद्वान् और पत्र संपादकों के अभिप्राय - पत्र उपस्थित हैं जो आवश्यकता पड़ने पर प्रकाशित होंगे | भक्तों को भी
इसी प्रकार पिशाचपंडिताचार्य और उनके
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