Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 11
________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र हो, क्या वह प्रचण्ड किरणों वाले सूर्य के उज्ज्वल स्वरूप का कुछ निरूपण कर सकता है ? नहीं कर सकता। टिप्पणी आचार्य ने उल्लू के बच्चे का उदाहरण बड़ा ही जोरदार दिया है। उल्लू खुद ही दिन में अन्धा रहता है और फिर उसके बच्चे की अन्धता का तो कहना ही क्या है ! अस्तु, उल्लू का बच्चा यदि सूर्य के रूप का अधिक तो क्या, कुछ भी वर्णन करना चाहे तो क्या कर सकता है ? नहीं कर सकता। जन्म धारण कर जिसने कभी सूर्य को देखा ही न हो, वह सूर्य का क्या खाक वर्णन करेगा? आचार्य कहते हैं कि भगवन् ! मैं भी अज्ञानरूपी अन्धकार से अन्धा होकर आपके दर्शन से वञ्चित रहा हूँ । अतः अनन्त ज्योतिर्मय आपके स्वरूप का भला क्या वर्णन कर सकता हूँ ? आप ज्ञान-सूर्य और मैं अज्ञानान्ध उलूक ! दोनों का क्या मेल ? [ ४ ] मोह-क्षयादनुभवन्नपि नाथ ! मर्यो, नूनं गुणान् गणयितुं न तव क्षमेत । कल्पान्त-वान्त-पयसः प्रकटोऽपि यस्मान् -- मीयत केन जलधेर् ननु रत्न-राशिः ? हे प्रभो ! मोहनीय-कर्म को क्षय कर देने के बाद केवल-ज्ञान की भूमिका पर पहुँचा हुआ महापुरुष, निश्चय ही आपके गुणों को जान तो लेता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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