Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 74
________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र भाषा चौपाई १५ मात्रा : ३४ : जे तुम चरण-कमल तिहु काल । सेवहिं तज माया - जंजाल ।। भाव - भगति मन हरष अपार । धन्य - धन्य तीन जग अवतार ।। :३५: भव - सागर में फिरत अजान । मैं तुम सुजस सुन्यो नहिं कान ।। जो प्रभु नाम मन्त्र मन धरे। तासों विपद भुजंगम डरे।। मन वांछित फल निज-पद मांहिं।। मै पूरव भव सेये नाहि ॥ माया-मगन फिरयो अज्ञान । करहिं रक जन मुझ अपमान ।। :३७ : मोह - तिमिर छायो दृग मोहि । जन्मान्तर देख्यो नहि तोहि ।। तो दुर्जन मुझ संगति गहें। मर्म - छेद के कुवचन कहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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