Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 84
________________ चिन्तामणि स्तोत्र ७७ ४ : श्री चिन्तामणिपार्श्व - विश्वजनता- संजीवनस्त्वं मया, दृष्टस्तात ! ततः श्रियः समभवन्नाशक्रमाचक्रिणम् । मुक्तिः क्रीडति हस्तयोर्बहुविधं सिद्ध मनोवांछितं, दुर्दैव दुरितं च दुर्दिनभयं कष्टं प्रणष्टं मम ॥ प्रभो ! आप चिन्तामणि- रत्न के सामान अभीष्ट फल प्रदान करने वाले हैं । यथार्थरूप में आप ही चिन्तामणि हैं। क्योंकि विश्व के समस्त प्राणियों के जीवन-संरक्षण के लिए आप संजीवन के तुल्य हैं । मैंने जब से आपके स्वरूप का ध्यान और नाम का जप किया है, तब से मुझे सर्व प्रकार से सुख शान्ति और आनन्द उपलब्ध हुए हैं । m मुझे क्या कुछ नहीं मिला ? आपकी कृपा से मुझे सब कुछ मिला । इन्द्र का ऐश्वर्य मिला, चक्रवर्ती जैसी ऋद्धि मिली और साधकों की सिद्धि (मुक्ति) भी मेरे हाथों में खेल रही है । अनेक प्रकार के मनोरथ मेरे सिद्ध हुए हैं । प्रभो ! आपकी कृपा से ही मेरा दुर्भाग्य, मेरा बुरा समय, मेरा पाप और मेरा भय एवं मेरा कष्ट - सब नष्ट हो गए, चकनाचूर हो गए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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