Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 82
________________ चिन्तामणि-स्तोत्र यहाँ भगवान् के दिव्य रूप का बड़ा ही सुन्दर एवं मनोहर वर्णन किया है। [ २ ] पातालं कलयन् धरा धवलयन्नाकाशमापूरयन, दिकचक्र क्रमयन् मुरासुरनरश्रेणि च विस्मापयन् । ब्रह्माण्डं सुखयन जलानि जलधेः फेनच्छलाल्लोलयन, श्री चिन्तामणि - पार्श्वसंभवयशो - हंसश्चिरं राजते ।। ___ भगवान् चिन्तामणि पार्श्वनाथ का यश समस्त लोक में परिव्याप्त था । प्रस्तुत श्लोक में भगवान् के यश को हंस कहा गया है। जिस प्रकार हंस उज्ज्वल होता है, उसी प्रकार भगवान् का यश भी उज्ज्वल एवं धवल था। चिन्तामणि पार्श्वनाथ का यशोरूपी हंस सर्वत्र अव्याहत-गति था, विश्व का वह कौन-सा स्थान है, जहाँ वह न पहुँचा हो ? उसने अपनी धवलिमा से इस धारा को धवल बनाया, पाताल के घोर अन्धकार को नष्ट किया, समस्त आकाश को उसने पूर दिया। समग्र दिशाओं की सीमा को वह पार कर गया। उसने अपनी उज्ज्वल धवलिमा से स्वर्गवासी देवों को विस्मित किया, पाताल के असुरों को चकित किया, और भू-लोक के मानवों को स्तब्ध किया। उसने अपनी लीलाओं से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को सुखी बना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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