Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 87
________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र [ ८ ] हीं श्रींकारवरं नमोऽक्षरपरं ध्यायन्ति ये योगिनो, हृत्पद्य विनिवेश्य पार्श्वमधितं चिन्तामणीसंज्ञकम् । भाले वामभुजे च नाभिकरयोर् भूयो भुजे दक्षिणे, पश्चादष्टदलेषु ते शिवपदं द्वित्र वैर् यान्त्यहो । चिन्तामणि मन्त्र की महिमा अपार है। इसका प्रभाव अद्भुत है। ही कार एवं श्रींकार से समन्वित और अन्त में नमः अक्षर से युक्त तथा चिन्तामणिसंज्ञक भगवान् पाश्र्वनाथ का, जो योगी एवं साधक-जन हृदय में धारण करके ध्यान करते हैं, वे अवश्य ही परम सुख को प्राप्त करते हैं। चिन्तामणि-रत्न की तरह जो साधक चिन्तामणिमन्त्र को अपने भाल पर, बांई भुजा पर, दाहिनी भुजा पर, नाभि पर और दोनों हाथों में धारण करके फिर अष्ट - दल कमल में प्रभु का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य दो-तीन भवों में ही शिवपद प्राप्त कर लेते हैं, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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