Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 85
________________ ७८ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र यस्य प्रोढ़तम-प्रतापतपनः प्रोद्दामधामा जगज, जङ घालः कलिकालकेलिदलनो मोहान्धविध्वंसकः। नित्यद्योतपदं समस्तकमलाकेलीगहं राजते, स श्रीपार्वजिनोजने हितकरश्चिन्तामणिः पातु माम् ।। ___संसार के समस्त जीवों का कल्याण करने वाले भगवान चिन्तामणि पार्श्वनाथ, मेरी रक्षा करें। भगवान पार्श्वनाथ, अतिशय करनेवाले हैं, कलिकाल की लीला को नष्ट करनेवाले हैं। मोहरूपी अन्धकार के विध्वंसक हैं। भगवान् पार्श्वनाथ की भक्ति करनेवाले भक्त के घर में सदा लक्ष्मी का वास और ज्ञान का प्रकाश रहता है। विश्वव्यापितमो हिनस्ति तरणिर्बालोपि कल्पांकुरो, दारिद्रयाणि गजावली हरिशिशुः काष्ठानि वह्नः कणः । पीयूषस्य लवोऽपि रोगनिवहं यद्वत् तथा ते विभो, मूर्तिः स्फूतिमती-सती त्रिजगती-कष्टानि हतु क्षमा ॥ . प्रौढ़सूर्य तो क्या, बालसूर्य भी विश्व में व्याप्त अन्धकार को नष्ट कर डालता है। कल्पवृक्ष तो क्या, उसका एक नन्हा-सा अंकुर भी दरिद्रता को दूर कर देता है । सिंह तो क्या, सिंह का छोटा-सा शिशु भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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