Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 86
________________ चिन्तामणि स्तोत्र आग की एक काष्ठ के ढ़ेर गज-घटा को छिन्न-भिन्न कर देता है। छोटी-सी चिनगारी भी हजारों मण को जला कर खाक कर देती है । बिन्दु भी हजारों रोगों को नष्ट कर इसी प्रकार आप त्रिभुवन के समस्त कष्टों को, दुःखों को समाप्त कर सकते हैं । अमृत का एक डालता है । ७६ [ ७ ] श्री चिन्तामणिमन्त्रमोंकृति-युतं ह्रींकारसाराश्रितं, श्रीमहं नमिऊणपासकलितं त्रैलोक्य वश्यावहम् । द्वेधाभूतविषापहं विषहरं श्रेयः - प्रभावाश्रयं, सोल्लासं वसहाङ्कितं जिनफुलिंगानन्ददं देहिनाम् ॥ चिन्तामणि मन्त्र में अद्भुत शक्ति है । जो भक्त शुद्ध मन से उसका जप करता है, निश्चय ही उसका कल्याण होता है । उसे परम सुख प्राप्त होता है । चिन्तामणि मन्त्र 'ॐ' शब्द की आकृति वाला है । ह्रींकार से युक्त है । 'श्री' से सम्पन्न है । 'अहं' से वेष्टित है । 'नमिऊण' से बद्ध है । यह मन्त्र तीनों लोकों को वश में करनेवाला है । विष-रूप विषय को दूर करनेवाला है । सर्प आदि के विष का हरण करनेवाला विषहर है | कल्याण करनेवाला है । प्रभाव एवं यश को बढ़ाने वाला है । व, स ह - इन अक्षरों से युक्त यह मन्त्र ऋद्धि, सिद्धि और मुक्ति देनेवाला है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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