Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 88
________________ चिन्तामणि - स्तोत्र [s] नो रोगा नैव शोका, न कलह - कलना, नारि-मारि-प्रचाराः । नैवाधिर्नासमाधिर, न च दर - दुरिते, दुष्ट - दारिद्रता नो ॥ नो शाकिन्यो ग्रहा नो, न हरि करि गणाः व्याल - वैताल - जालाः । जायन्ते पार्श्व चिन्तामणि - नति वशतः, प्राणिनां भक्तिभाजाम् ॥ भगवान् चिन्तामणि पार्श्वनाथ की भक्ति करनेवाले भक्तों के जीवन में सदा आनन्द - मंगल और सुख रहता है । - ८१ - भगवान् के भक्त के जीवन में न कभी रोग आता है; न कभी शोक आता है और न कभी कलह आता है । अरि और मारि का भय भी नहीं रहता ! वे आधि, व्याधि और उपाधि के ताप से कभी तापित नहीं होते । पाप और दरिद्रता वहाँ कभी नहीं रहते। भूत-प्रेत, पिशाच और ग्रह का भय भी वहाँ नहीं रहता । सर्प, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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