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चिन्तामणि - स्तोत्र
[s] नो रोगा नैव शोका, न कलह - कलना, नारि-मारि-प्रचाराः ।
नैवाधिर्नासमाधिर, न च दर - दुरिते, दुष्ट - दारिद्रता नो ॥
नो शाकिन्यो ग्रहा नो, न हरि करि गणाः व्याल - वैताल - जालाः ।
जायन्ते पार्श्व चिन्तामणि - नति वशतः, प्राणिनां भक्तिभाजाम् ॥
भगवान् चिन्तामणि पार्श्वनाथ की भक्ति करनेवाले भक्तों के जीवन में सदा आनन्द - मंगल और सुख रहता है ।
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भगवान् के भक्त के जीवन में न कभी रोग आता है; न कभी शोक आता है और न कभी कलह आता है । अरि और मारि का भय भी नहीं रहता ! वे आधि, व्याधि और उपाधि के ताप से कभी तापित नहीं होते । पाप और दरिद्रता वहाँ कभी नहीं रहते। भूत-प्रेत, पिशाच और ग्रह का भय भी वहाँ नहीं रहता । सर्प,
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