Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ उपसर्ग-हर स्तोत्र [ १ ] - उवसग्ग-हरं पासं, पासं वदामि कम्म-घण-मुक्कं । विसहर - विस - निन्नासं, मंगल-कल्लाण-आवासं ।। संघ पर होने वाले सब उपसर्गों को दूर करनेवाला पार्श्व नामक देव जिनका चरण-सेवक है, जो कर्म-रूपी सघन बादलों से मुक्त हो कर प्रकाशमान हैं, जिनके नाम-स्मरण मात्र से सर्प का भयंकर विष सहसा नष्ट हो जाता है और जो मंगल तथा कल्याण के निवासस्थान हैं, उन भगवान पार्श्वनाथ स्वामी के चरणों में मैं वन्दना करता हूँ। [ २ ] विसहर - फुलिंग-मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ। तस्स गह-रोग-मारी दु-जरा जति उवसाम।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101