Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 78
________________ उपसर्ग - हर स्तोत्र ७१ सर्प के विष को उतारने के लिए भगवान् पार्श्वनाथ का पवित्र नाम ही उत्कृष्ट मंत्र है । अतः जो मनुष्य इस नाम मंत्र को सदा अपने कण्ठ में धारण करता है, उसके दुष्ट ग्रह, भीषण रोग, काल- ज्वर आदि सब-के-सब उपद्रव पूर्णरूप से शान्त - उपशान्त हो जाते हैं । [ ३ ] चिट्ठउ दूरे मंतो तुह पावंति तुज्झ पणामो वि बहु-फलो होइ । नर- तिरिएसु वि जीवा दुक्ख - दोहग्गं || पावंति न हे प्रभो ! आपके नाम-मंत्र का जप तो बहुत बड़ी चीज है, यहाँ तो केवल आपको भक्तिपूर्वक किया हुआ नमस्कार ही अमित फल का देनेवाला है। जो आपका भक्त है, वह कभी भी मनुष्य, तिर्यञ्च आदि गतियों में दुःख और दुर्भाग्य नहीं पा सकता । वह जहाँ भी रहेगा, आनन्द में ही रहेगा । [ ४ ] सम्मत्त चितामणि जीवा लद्ध े, कप्पपायवन्भहिए । ठाणं ॥ अविग्घेणं, अयरामरं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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