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कल्याण-मन्दिर स्तोत्र-भाषा
:४२ : मैं तुम चरण-कमल गुन गाय । बहुविध भक्ति करी मन लाय ।।
.. जन्म-जन्म प्रभु पाऊँ तोहि ।
यह सेवा-फल दीजे मोहि ।। दोधकान्त बेसरी छन्द
:४३:
इहि विधि श्री भगवन्त, सुजस जे भविजन भासहिं । ते जन पुण्य-भण्डार संचि, चिर पाप प्रणासहिं ।
:४४ : रोम-रोम हुलसंत अंग, प्रभु-गुण मन ध्यावहिं। स्वर्ग-संपदा भुज वेग, पंचम - गति पावहिं ।।
:४५: यह कल्याण - मन्दिर कियो,
__'कुमुद - चन्द्र' की बुद्धि । भाषा कहत 'बनारसी',
कारण समकित - शुद्धि ।
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