Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 72
________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र भाषा : २६ : तीन छत्र त्रिभुवन उदित, मुक्ता गण त्रिविधि रूप धर मनहुँ शशि, सेवत नखत पद्धरि छन्द : २७ : प्रभु तुम शरीर दुति परताप - पुंज जिम अति धवल सुजस तिनके गढ़ तीन छवि रतन जेम | सुद्ध हेम || रूपा - समान । विराजमान || : २८ : भाल । सेवहि सुरेन्द्र कर नमत तिन सीस-मुकुट तज देहिं माल || तुम चरण लगत लह लहै प्रीति । नहि रमहिं और जन सुमन-रीति ॥ : २६ : प्रभु भोग-विमुख तन कर्म दाह । जन पार करत भव - जल निवाह || ज्यों माटी - कलश सुपक्व होय । ले भार अधोमुख तिरहि तोय || ६५ देत । समेत ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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