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कल्याण-मन्दिर स्तोत्र भाषा
जब तुम ध्यान धरे मुनि कोय । तब विदेह परमातम होय ।।
जैसे धातु शिलातनु त्याग । कनक-स्वरूप धवो जब आग ।।
१६ :
जाके मन तुम करहु निवास । विनसि जाय क्यों विग्रह तास ।।
ज्यों महन्त बिच आवे कोय । विग्रह-मूल निवारै सोय ।।
: १७ : करहिं विबुध जे आतम -ध्यान । तुम-प्रभाव ते होय निदान ।।
जसे नीर सुधा-अनुमान । पीवत विष-विकार की हान ॥
: १८ :
तुम भगवन्त विमल-गुणलीन । समल-रूप मानहिं मति-हीन ॥
ज्यों पीलिया रोग दंग गहे । वर्ण - विवर्ण शंख सो कहे ।।
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