Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 68
________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र भाषा : ७ : तुम जस महिमा अगम अपार । नाम एक त्रिभुवन-आधार ॥ आवै पवन पदमसर होय । ग्रीषम-तपन निवारै सोय ।। :८: तुम आवत भविजन-घट माँहि । कर्म-निबन्ध शिथिल ह्व जाहि ।। ज्यों चन्दन तरु बोलहिं मोर । डरहिं भुजंग भगे चहुँ ओर ।। तुम निरखत जन दीन-दयाल । संकट ते छूटें तत्काल । ज्यों पशु धेरे लेहि निशि चोर । ते तज भागहिं देखत भोर ।। तू भविजन-तारक किमि होहि । ते चितधार तिरहि ले तोहि ॥ यह ऐसे कर जान स्वभाव । तिरहिमसक ज्यों गभितबाव ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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